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अठारह कर्त्तव्य सम्बन्धी मुद्राओं का सविधि विश्लेषण......143 यह मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा में धर्मगुरुओं और भक्तों द्वारा 18 कर्तव्यों के परिपालनार्थ धारण की जाती है। मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह घोड़े के मुखवाले देव की सूचक है।
व्यग्रीवा मुद्रा विधि
हथेलियों को मध्यभाग में रखते हुए तर्जनी और अनामिका को हथेली के अन्दर मोड़ें, मध्यमा और कनिष्ठिका को ऊपर की ओर सीधा रखें एवं उनके अग्रभागों को परस्पर में स्पर्श करवायें, अंगूठे ऊपर उठे हुए और उनकी बाह्य किनारियाँ स्पर्शित करती हुई रहने पर हयग्रीवा मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने से वायु तत्त्व का संतुलन सम्यक प्रकार से होता है। इससे प्राण वायु में स्थिरता, वायु सम्बन्धी दोषों का निराकरण, फेफड़ा, गुर्दा, हृदय आदि से संबंधित रोगों में फायदा होता है। • विशुद्धि चक्र को प्रभावित करते हुए चित्त को शान्त, शोकहीन एवं दीर्घजीवी बनाने में यह मुद्रा उपयोगी