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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......119 यह मुद्रा छाती के स्तर पर धारण की जाती है। दोनों हाथों में प्रतिबिंब की भाँति मुद्रा बनती है।
वज धूपे मुद्रा विधि
हथेलियों को स्वयं के सम्मुख रखें, अंगुलियों एवं अंगूठों को मुट्ठी रूप में बांधे, अंगूठे को अंगुलियों के भीतर रखें तथा दोनों हाथों को समीप लाएं, इस भाँति वज्रधूपे मुद्रा बनती है।10 सुपरिणाम
• इस मुद्रा की साधना आकाश एवं जल तत्त्व को प्रभावित करती है इससे वैभाविक दशाएँ जैसे काम, क्रोध, मोह आदि उपशान्त होते हैं। तरल पदार्थों का प्रवाह सम्यक होता है। हृदय सम्बन्धी रोगों का निर्गमन होता है। . यह मुद्रा करने से आज्ञा चक्र एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं। इससे बुद्धि एकाग्र एवं कुशाग्र बनती है, वचन सिद्धि प्राप्त होती है तथा स्वभाव एवं मन शांत बनता है। • दर्शन एवं स्वास्थ्य केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कषायों पर नियंत्रण और निर्णय शक्ति का विकास करती है।