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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य... ... 113
सितात पत्र मुद्रा
करता हुआ रहें तथा तर्जनी दायीं हथेली को स्पर्श करती हुई रहने पर सितातपत्र मुद्रा बनती है। 5
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि, वायु एवं आकाश तत्त्वों का नियंत्रण करती है। इन तीनों तत्वों के संयोग से कुपितवायु, गठिया - साइटीका, वायुशूल, लकवा आदि रोगों का निवारण होता है । • इस मुद्रा को करने से मणिपुर, अनाहत एवं आज्ञा चक्र जागृत होते हैं। इससे वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह आदि गुणों की प्राप्ति और समत्व भावों की उत्पत्ति होती है। • इस मुद्रा का प्रभाव एड्रिनल, थायमस एवं पिच्युटरी ग्रन्थि पर पड़ता है। इससे शरीर की आन्तरिक संरचनाएँ मजबूत एवं क्रियाशील बनती है। बच्चों में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है, तनावमुक्ति के साथ मानसिक शक्ति की अनुभूति होती है ।