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सप्तरत्न सम्बन्धी मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......103 सुपरिणाम
• इस मुद्रा का प्रयोग अग्नि तत्त्व को प्रभावित करते हुए एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज के स्राव को संतुलित करता है, जिससे उदर सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। • यह मुद्रा मणिपुर चक्र को प्रभावित कर तैजस केन्द्र को सक्रिय करती है जिससे शरीर एवं आत्मा दोनों के तेज में वृद्धि होती है। . इसके प्रयोग से डायबिटिज, अपच, उदर पीड़ा आदि शारीरिक रोगों का निवारण होता है। 6. अश्व रत्न मुद्रा ___यह तान्त्रिक मुद्रा बौद्ध (वज्रायन) परम्परा में साधकों द्वारा धारण की जाती है। यह किसी मूल्यवान अश्व के भेंट की सूचक है। यह सप्तरत्नों में से एक है। इस मुद्रा का प्रयोग शक्तिशाली वज्रायना देवी तारा की पूजोपासना के समय किया जाता है। इसमें दोनों हाथ एक-दूसरे के प्रतिबिंब के समान नजर आते हैं। पूजा मन्त्र यह है- 'ओम् अश्वरत्न प्रतिच्चाहम् स्वाहा।'
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अश्व रत्न मुद्रा