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84... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन परिष्कृत बनती है। इससे क्रोधादि कषायों पर नियंत्रण होता है। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। यह बालकों में उत्साह वर्धन कर सुस्ती, जड़ता, अनुत्साह, निष्क्रियता आदि का निवारण करती है। पिनियल ग्रंथि पर दबाव पड़ने से समझदारी, मनोबल, हृदय की सुकुमारता आदि दिव्य गुणों की प्राप्ति होती है। 35. पेंग्-परिनिष्फर्न मुद्रा (निर्वाण प्राप्ति मुद्रा)
यह बौद्ध परंपरा की महत्त्वपूर्ण मुद्रा है क्योंकि इस मुद्रा में भगवान बुद्ध को निर्वाण पद की प्राप्ति हुई थी। भारत में इसका अपर नाम शयन मुद्रा है। इसमें भगवान बुद्ध को शयन करते हुए दिखलाया गया है। जो चिरकाल के लिए निद्राधीन हो जाता है वही निर्वाण कहलाता है। यहाँ निद्राधीन से तात्पर्य सदा के लिए बाह्य चक्षुओं को मीलित कर अन्तर्चक्षु को उद्घाटित करना है। भगवान बुद्ध द्वारा धारण की गई यह 35वीं मुद्रा है।
पेंग्-परिनिप्फर्न मुद्रा