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66... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि ___दाहिना हाथ नीचे की तरफ लटकता हुआ रहे तथा बायीं हथेली बाहर की तरफ ऊपर उठी हुई और अंगुलियाँ हल्की सी झुकी हुई रहने पर 'पेंग्-हम्-फ्राकाएँ-चन्' मुद्रा बनती है।24
सपरिणाम पग-चम्-फ्रा-कार्य-चन् मुद्रा
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व का संतुलन करती है इससे शरीरनाड़ी शुद्धि, कब्ज निवारण तथा पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता बढ़ती है। हृदय शक्तिशाली बनता है। • यह मुद्रा मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र को प्रभावित करते हुए साधक की ज्ञान रश्मियाँ जागृत करती है। इससे फेफड़ें और हृदय का नियमन और कैल्शियम, सोडियम, जल, रक्त, शर्करा आदि का संतुलन होता है। • विशुद्धि केन्द्र एवं तैजस केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा कण्ठ सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करती है तथा जीवन की क्षमता आदि गुणों में वृद्धि करती है। • एक्युप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार यह मुद्रा बालक का विकास करती है। हिचकी, स्नायु में ऐंठन, प्रमाद-आलस्य एवं शरारतों को कम करती