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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......43
पेंग् लोय् तर्ड मुद्रा पाचन, कमजोरी आदि रोगों का निवारण भी करती है। • मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा पाचक रसों के उत्पादन, शरीर में जल एवं सोडियम का नियंत्रण और सम्यक चारित्र का विकास करती है। • इस मुद्रा के प्रयोग से एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज पर प्रभाव पड़ता है जिससे यकृत, लीवर, गाल ब्लेडर, पाचक रस एवं पित्त उत्पादन का कार्य संतुलित होता है। इससे तीव्र परखशक्ति,
आंतरिक शक्ति एवं साहस में वृद्धि होती है। • एक्युप्रेशर के अनुसार यह शरीर में रक्त परिभ्रमण, प्राणवायु संचार आदि को नियमित करती है तथा नेतृत्व गुण में विकास कर सामाजिक कार्यों में रूचि बढ़ाती है। 4. पेंग संग रब्यक मद्रा (घास का ढेर ग्रहण करने की मुद्रा)
यह मुद्रा थायलैण्ड में पेंग् सुंग् रब्यक् और भारत में अंचित लोलहस्त नाम से प्रसिद्ध है। भगवान बुद्ध द्वारा धारण की गई 40 मुद्राओं में से चौथी है। इस मुद्रा के द्वारा बुद्ध भगवान रात्रि विश्रमणार्थ घास पुंज को ग्रहण करते थे