________________
जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......25
36. उत्तराध्ययन सूत्र की शान्त्याचार्य टीका 37. तुरिय भेद पडिवत्ती पूजा, उपशम खीण सयोगी रे । चउहा पूजा इम उत्तराझयणे, भाखी केवल भोगी रे ॥
आनंदघन चौबीसी, सुविधिनाथ स्तवन, गा. 6
38. श्रीचंद्रप्रभ जिन स्तवन, देवचंद्र चौबीसी 39. (क) पुप्फाऽऽमिषस्तोत्र - प्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्यम् ।
ललित विस्तरा (ख) पूयं वि पुण्फाऽऽमिस थुइ - पडिवत्ति भेयओ चउविहंपि । जह सत्तिए कुज्जत्ति, इत्येवं चतुर्विधा पूजोक्ता ।।
(ग) पुप्फामिसथुइ पडिवत्ति भेएहिं भासिया चउहा । जहसत्तिए कुज्जा पूया, पूया पूयापसब्भावा ॥
सम्बोध प्रकरण 190
40. तत्र 'आमिष' शब्देन मांसभोज्य वस्तुरुचिर वर्णादि लाभ-संचयलाभ रुचिररुपादि शब्द नृत्यादिकामगुण-भोजनादयोऽर्थाः यथासम्भवं प्रकृतभावे योज्याः । देशविरतौ चतुर्विधाऽपि, सरागसर्व विरतौ तु स्तोत्र प्रतिपत्ति द्वे पूजे समुचिते । ललित विस्तरा टीका, पृ. 45-46
41. (क) पिण्डक्रियागुणगतैर्गम्भीरै र्विविधवर्ण संयुक्तैः । आशयविशुद्धि जनकेः संवेगपरायणैः पुष्यैः ॥ पापानिवेदगर्भैः प्रणिधान पुरस्सरैर्विचित्रार्थेः । अस्खलिताविगुण युतैः, स्तोत्रैश्च महामति ग्रथिते ॥
वसुदेवहिंडीका, भा- 2
(ख) पिण्ड क्रिया - गुणोदरैरेषा, पापागर्हापरेः सम्यक
(ख) षोडशक प्रकरण, 9/6-7 स्तोत्रैश्च संगता । प्रणिधान पुरःसरैः ।।
द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, भा-2, 5/24
42. आचारांग सूत्र, 1/5/6
43. ललितविस्तरा टीका, पृ. 45
44. ललितविस्तरा टीका, पृ. 47
45. प्रोक्ता पूजार्हतामिज्या सा चतुर्था सदार्चनम् । चतुर्मुख महः कल्प
द्रुमाश्चाष्टाह्निकोऽपि ।।
महापुराण, 38/26