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जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार......21 प्रयोग किया तो 108 प्रकारी पूजा हो गई और 1008 प्रकार की सामग्री का उपयोग किया तो 1008 प्रकारी। ऐसी स्थिति में वर्तमान प्रचलित विविध पूजन-महापूजन आदि में 6 प्रकार, 8 प्रकार, 11 प्रकार, 17 प्रकार, बीस प्रकार अथवा पदों की पूजाएँ की जाती है तो फिर क्या उन्हें भी अलग-अलग प्रकारी पूजा में गिनेंगे?
वर्तमान प्रचलित पूजन-महापूजन आदि में मुख्य प्रधानता तो अष्टप्रकारी पूजा की ही होती है। इसके अतिरिक्त पद या यंत्र के विभिन्न पदों की उनके भेदों के अनुसार पूजा होती है, अत: यह पूजा के भेद नहीं होकर पूजा योग्य पदों के भेद हैं। इसी कारण इन्हें पूजा के प्रकारों में नहीं गिना गया है। वैसे तो पूजन के नाम से ही इनका पूजा रूप होना स्पष्ट हो जाता है।
इन पूजा भेदों को उल्लिखित करने का मुख्य कारण है आगम काल से अब तक प्रचलित विविध पूजाओं के विषय में हमारी सम्यक जानकारी हो। इसी के साथ किस समय कौन सी पूजा करनी चाहिए तथा किन परिस्थितियों में किस पूजा का सेवन किया जा सकता है और किसे अपवाद रूप में छोड़ा जा सकता है, इसका भी ज्ञान हो जाता है। इसी तरह पूर्वकाल में प्रयुक्त सामग्री एवं वर्तमानकालीन सामग्री का अन्तर भी स्पष्ट होता है। यह अध्याय जिनपूजा की शाश्वतता एवं विविधता को सिद्ध करते हुए उसकी त्रैकालिक प्रासंगिकता को प्रमाणित करता है। इसके माध्यम से जिनपूजा के विषय में प्रसरित विभिन्न भ्रान्तियों एवं शंकाओं का निवारण हो सकेगा तथा आराधक वर्ग नि:शंक होकर जिनपूजा मार्ग पर प्रवृत्त हो सकेगा। संदर्भ-सूची 1. संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 628 2. पाइअसद्दमहण्णवो, पृ. 611 3. पूआ सक्कारो, पंचाशक प्रकरण, पृ. 6/30 4. यागो यज्ञः क्रतुः पूजा सपर्येज्याध्वो मखः। मह इत्यापि पर्यायवचनान्यर्चनाविधेः।
महापुराण, 67/193 5. पुष्पाऽदिभिरर्चने, स्नानांगसूत्र, स्थान-3, उद्देश-3, उद्धृत अभिधान राजेन्द्र
कोश, भा. 5, 1073 6. इत्यप्रत्ययान्तस्य पूजनं पूजा। प्रशस्तमनोवाक्कायचेष्टेत्यर्थः।
आवश्यक नियुक्तिः, भा. 2, पृ. 14