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18... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
जिनलाभसूरिकृत आत्मप्रबोध में स्नपन, विलेपन, वस्त्रयुगल, गंधारोहण, पुष्पारोहण, मालारोहण, वर्णकारोहण, चूर्णारोहण, पताका (ध्वजा) आभरणारोहण, माल्यकलापगृहाकार, पुष्प प्रकट, अष्टमंगल, धूपोत्क्षेप, गीत, नृत्य और वाजिंत्र इन सत्रह प्रकार की पूजाओं का वर्णन है।80
अचलगच्छीय मुनि मेघराजजी ने भी इन्हीं सत्रह भेदों का उल्लेख किया है। केवल सप्तमी पूजा में उन्होंने वर्णकारोहण के स्थान पर पंचवर्णी पुष्पों से पूजा करने का उल्लेख किया है।81
उपरोक्त वर्णित सत्रहभेदी पूजाओं का नामोल्लेख करने वाले ग्रन्थों में संख्या को लेकर साम्य-वैषम्य देखा जाता है। जैसे कि उपदेशतरंगिणी में सत्रह पूजाएँ कही गई है परन्तु वर्णित पूजाएँ बीस हैं तथा संबोध प्रकरण में सोलह पूजाओं के ही नाम स्पष्ट होते हैं। जिनलाभसूरि कृत सत्रहभेदी पूजा एवं मुनि मेघराज कृत सत्रहभेदी पूजा का निर्माण आगम सूत्रों के आधार पर किया हुआ प्रतीत होता है क्योंकि आगमों का अनुकरण करते हुए उन्होंने भी दीपक, नैवेद्य, फल, आरती एवं मंगलदीपक आदि पूजाओं का समावेश सत्रहभेदी पूजा में नहीं किया है। इक्कीस प्रकारी पूजा
पूजा के इक्कीस भेदों का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य उमास्वाति ने पूजा प्रकरण में किया है। तदनन्तर विंशतिस्थानक विचार संग्रह, श्राद्धविधि कौमुदी, आचारोपदेश आदि में भी इसका वर्णन प्राप्त होता है।
उपदेशतरंगिणी82 के अनुसार भक्तजनों को अपनी भावना के आधार पर स्नान, विलेपन, आभरण, पुष्प, वास, धूप, दीप, फल, अक्षत, पान, सुपारी, नैवेद्य, जल, वस्त्र, चामर, छत्र, वाजिंत्र, गीत, नाटक, स्तुति, स्तवन एवं कोशवृद्धि (भंडार में यथाशक्ति जेवर, धन आदि रखना) इस तरह इक्कीस प्रकार की पूजाएँ करनी चाहिए। ____ आचारोपदेश में स्नान, चन्दन, दीप, धूप, पुष्प, नैवेद्य, जल, ध्वजा, वासचूर्ण, अक्षत, सुपारी, पान, कोशवृद्धि, फल, वाजिंत्र, ध्वनि, गीत, नृत्य, छत्र, चामर और आभूषण इन इक्कीस द्रव्यों से पूजा करने का वर्णन है।83
सकलचंद्रजी ने पूजा प्रकरण के आधार पर ही इक्कीस प्रकारी पूजा का निर्माण किया है। वह पूजाएँ निम्नोक्त हैं