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16... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ विविध द्रव्यों से जिनपूजा करने का उल्लेख है। जिसे सर्वोपचारी पूजा माना गया है।67 ___षोडशक प्रकरण एवं द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका के अनुसार दशार्णभद्र की कीर्ति एवं सर्व ऋद्धि से युक्त पूजा के समान स्वयं की विशिष्ट संपत्ति के अनुरूप की जाने वाली पूजा सर्वोपचारी पूजा कहलाती है।68
पंचाशक प्रकरण के अनुसार उत्तम सुगन्धित पुष्प, धूप, सर्वौषधि आदि से युक्त जलों के द्वारा जिन प्रतिमा का न्हवण करना चाहिए। सुगन्धित चन्दन आदि का विलेपन करना चाहिए। नैवेद्य, दीपक, सरसों, दही, अक्षत, गोरोचन तथा अन्य मंगलभूत वस्तुएँ तथा सोना, मोती, मणि आदि की विविध मालाओं से अपनी समृद्धि के अनुसार पूजा करना चाहिए।69 यह सर्वोपचारी पूजा कहलाती है। __ आचार्य जीवदेवसूरि रचित जिनस्नात्रविधि सर्वोपचारी पूजा पर ही आधारित है।
चैत्यवंदन महाभाष्य के अनुसार ऋद्धिवंत गृहस्थ के द्वारा सर्वोपचार से युक्त होकर स्नानाभिषेक, अर्चन, नृत्य-गीत पूर्वक सर्वोपचारी पूजा पर्व दिवसों में अथवा प्रतिदिन की जानी चाहिए। घी, दूध, दही एवं गंधोदक के द्वारा यह स्नान अधिक प्रभावशाली बनता है। पर्व दिनों में गीत, वाजिंत्र आदि के द्वारा सर्वोपचारी पूजा करनी चाहिए।
__ पद्मचरित और कथारत्नकोश में दूध, दही, घी आदि से अभिषेक करके सर्वोपचारी पूजा करने का वर्णन है।1
पूजा प्रकाश में सर्वोपचारी पूजा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि श्रावकों को विधि पूर्वक एवं जयणापूर्वक स्नान आदि क्रिया सम्पन्न करते हुए तथा जिनबिम्ब का सुगन्धित जल से अभिषेक करते हुए गोशीर्ष चंदन से विलेपन पूजा करना चाहिए। इसी के साथ सुगन्धित पुष्प, धूप, दीपक, अक्षत, विविध प्रकार के फल और जलपूरित पात्रों से विशेष पूजा करनी चाहिए।72 संबोध प्रकरण में स्नान, अर्चन, आभूषण, वस्त्र, फल, बलि, दीपक, नृत्य, गीत, आरती आदि के द्वारा सर्वोपचारी पूजा करने का उल्लेख है।3।
ब्रह्मसिद्धहस्त समुच्चय में बाह्य सामग्री के न होने पर जाप आदि के द्वारा सर्वोपचारी पूजा करने का वर्णन है। आचार्य हरिभद्रसूरि भी इसका समर्थन करते हैं।74