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8... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
पंचम प्रकार- प्रवचनसारोद्धार, चैत्यवंदन भाष्य आदि में अंग, अग्र एवं भावपूजा के भेद से तीन प्रकार की पूजा बताई गई है।34
1. अंग पूजा- परमात्मा के अंग पर चढ़ाने योग्य द्रव्यों को जिन प्रतिमा पर चढ़ाना अंगपूजा है। पूर्व काल में नित्यस्नान न होने से अंगपूजा के रूप में मात्र पुष्प पूजा ही की जाती थी। अत: कहीं-कहीं पर अंगपूजा को पुष्पपूजा भी कहा है। प्रवचनसारोद्धार में उल्लिखित 'पुष्पादि' में आदि शब्द अनुपम रत्न, सुवर्ण, मोती आदि के आभूषणों से प्रतिमा को अलंकृत करने, पवित्र वस्त्रों से परमात्मा की शोभा बढ़ाने एवं गोरोचन कस्तूरी आदि सुगन्धि द्रव्यों से विलेपन करने का सूचक है। वर्तमान में जल, चन्दन एवं पुष्पपूजा को अंगपूजा कहा जाता है।
2. अग्रपूजा- अग्र अर्थात आगे। जिस पूजा में परमात्मा के सामने द्रव्य चढ़ाए जाते हैं, वह द्रव्य पूजा अग्र पूजा कहलाती है। कहीं-कहीं पर अग्र पूजा के लिए आहार, अक्षत या नैवेद्य शब्द का भी प्रयोग हुआ है। अग्र पूजा परमात्मा के मूल गर्भगृह के बाहर करनी चाहिए। वर्तमान प्रचलित अष्टप्रकारी पूजा में धूप, दीपक, अक्षत, नैवेद्य एवं फल पूजा को अग्रपूजा में समाहित किया गया है।
जिनेश्वर देव की पूजा करते समय उत्तम भावों की वृद्धि के लिए उत्तम द्रव्यों द्वारा अंग एवं अग्र पूजा करनी चाहिए। ये दोनों पूजाएँ द्रव्य पूजा के अन्तर्गत आती हैं।
3. भावपूजा- परमात्मा के समक्ष चैत्यवंदन, नमुत्थुणं, स्तुति, स्तोत्र, नृत्य, ध्यान आदि के द्वारा शुभ एवं शुद्ध भाव करना भाव पूजा है। परमात्मा के शारीरिक गुणों के सूचक, गंभीर विधि वर्ण संयुक्त, भाव विशुद्धि में सहायक संवेग परायण, स्वकृत पाप निवेदन से युक्त, प्रणिधान पुरस्सर, अस्खलित गुण से संयुक्त, महान बुद्धिशाली कवियों द्वारा रचित, उत्तम भावों से गुंफित स्तुतिस्तोत्रों के द्वारा परमात्मा की भावपूजा करनी चाहिए।
षष्ठम प्रकार- षोडशक प्रकरण, चैत्यवंदन भाष्य आदि में पूजा के अन्य प्रकारों के आधार पर 1. पंचोपचारी, 2. अष्टोपचारी एवं 3. सर्वोपचारी - ये तीन भेद किए गए हैं। इनका विस्तृत वर्णन आगे करेंगे।35
विवेचित त्रिविध पूजाओं में से वर्तमान में अंग, अग्र एवं भाव पूजा