________________
श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती...379
सामूहिक आयोजन में सम्मिलित होना चाहिए।
शंका- कई मन्दिरों में पंच धातु की प्रतिमाएँ मूलनायक प्रतिमाजी के नीचे पबासन पर रखी जाती हैं। यदि पूजा करने वाले बच्चों के वहाँ पैर आते हों या घुटने लगते हों तो क्या करना चाहिए?
समाधान- यदि पंचधातु की प्रतिमाएँ अधिक हों तो उनके लिए अलग से जगह बना देनी चाहिए। यदि अलग से स्थान न हो तो भी उन्हें इस प्रकार रखना चाहिए कि वहाँ पर किसी का पैर आदि न लगे तथा पूजा करने वाले बार-बार उन्हें इधर-उधर न करते रहें।
शंका- मंदिर में चढ़ाया हुआ चावल, फल आदि निर्माल्य, पुजारी को देना या उसे देवद्रव्य की वृद्धि के लिए बेचना चाहिए?
समाधान- परमार्थत: तो निर्माल्य द्रव्य बेचकर उससे देवद्रव्य की वृद्धि करनी चाहिए। किन्तु यदि बहुत पहले से पुजारी आदि को देने की परम्परा चल रही हो तो उसमें विक्षेप सोच समझकर करना चाहिए। क्योंकि यदि इससे पूजारी वर्ग के मन में खेद या अश्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाए तो मंदिर को अधिक हानि होने की संभावना रहती है। पुजारी को समझा सकें तो समझाकर पूर्व प्रचलित परम्परा में अवश्य परिवर्तन करना चाहिए। अन्यथा उसे वैसे ही चलने देना चाहिए। नव निर्मित मंदिरों में प्रारंभ से ही उचित व्यवस्था रखनी चाहिए।
शंका- पुजारी के पास यदि कम दाम में अच्छी बादाम-मिश्री आदि मिलते हो तो उन्हें खरीदने में क्या दोष है?
समाधान- पुजारी के द्वारा सस्ते दाम में मिलने वाली बादाम-मिश्री आदि मंदिर में चढ़ाए हए निर्माल्य द्रव्य ही होते हैं। शास्त्रकारों ने निर्माल्य द्रव्य का उपयोग श्रावकों के लिए निषिद्ध किया है। परमात्मा के लिए सस्ती या हल्की Quality के द्रव्य प्रयोग की भावना भी श्रावक को नहीं करनी चाहिए। श्रावक स्वआश्रित कर्मचारी वर्ग को भी निर्माल्य द्रव्य नहीं दे सकता तो फिर परमात्मा को निर्माल्य द्रव्य का अर्पण कैसे किया जा सकता है? अत: जो कार्य श्रावक के लिए निषिद्ध हैं वह करना दोषपूर्ण है।
शंका- कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि पालीताना, शंखेश्वर आदि तीर्थ स्थानों में निर्माल्य चावल-बादाम आदि बेचने के लिए रखे जाते हैं वहाँ जाने वाले यात्रीगण एवं नव्वाणुं-चातुर्मास आदि करने