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________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन 353 सकता है। यह चढ़ावा शास्त्रोक्त न होने से परम्परानुसार अनुकरण किया जाता है। प्रवर्त्तित परम्परा में देश-काल- परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन लाया जा सकता है। अत: जहाँ जैसी आवश्यकता और व्यवस्था हो वैसा करना चाहिए ।" संबोध सप्तति आदि ग्रन्थों में देवद्रव्य के समान ही साधारण द्रव्य की वृद्धि करने का निर्देश है। आचार्य विजयवल्लभसूरि के अनुसार स्वप्नों की राशि को साधारण खाते में रखने में कोई बाधा नहीं है क्योंकि यह संघ की धरोहर है, संघ ठहराव करता है और संघ को ही उस पर अमल करना है। उनके इसी कथन के आधार पर यह राशि साधारण द्रव्य में जमा होने लगी। प्रतिष्ठा अंजनशलाका आदि में नवकारसी, स्वामी वात्सल्य आदि प्रभु के निमित्त होने पर भी वह राशि साधारण खाते में जाती है। इसी प्रकार परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा के नकरे आदि साक्षात प्रतिमा से सम्बन्धित होने पर भी जब साधारण खाते में जमा होते हैं और उस द्रव्य से लाए हुए चंदन आदि से जब श्रावक पूजा कर सकते हैं तो फिर स्वप्न द्रव्य को साधारण खाते में क्यों नहीं ले जा सकते ? मुनि पीयूषसागरजी म.सा. के अनुसार इस राशि का उपयोग साधारण में कर सकते हैं। यद्यपि तीर्थंकर जन्म से ही पूज्य होते हैं परन्तु उनकी अष्ट प्रातिहार्य रूप विशेष भक्ति तो केवलज्ञान प्राप्ति के बाद ही होती है। प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार“जिनवरेन्द्रः प्रकृष्ट पुण्यरूपतीर्थंकरनामकर्मोदयात्तीर्थंकर इत्यर्थः ' इसमें भी तीर्थंकर नामकर्म के उदय से ही तीर्थंकर को जिनवर मानने का उल्लेख है। देवद्रव्य यह तीर्थंकर परमात्मा से सम्बन्धित है। स्वप्न दर्शन यह तीर्थंकर बनने से पूर्व होता है। अत: उस अवस्था को प्रभु अवस्था न माने तो स्वप्न राशि को साधारण द्रव्य में ले जा सकते हैं। वर्तमान में अधिकांश संघ स्वप्न राशि को साधारण द्रव्य में ले जाते हैं। जबकि बहुत 'से आचार्यों का मानना है कि यह राशि देवद्रव्य में जाना चाहिए। उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. के अनुसार भी यह द्रव्य देवद्रव्य में जाना चाहिए। इन लोगों की मान्यता है कि यह स्वप्न परमात्मा से ही सम्बन्धित है, जन्मोत्सव परमात्मा का मनाते हैं, स्वप्न परमात्मा की माता के द्वारा देखे जाते हैं अतः स्वप्न सम्बन्धी द्रव्य देवद्रव्य में जाना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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