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350... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... संबंधी चढ़ावों की रकम पूजार्ह गुरु द्रव्य के अन्तर्गत जाती हैं।
इस द्रव्य का उपयोग साधु-साध्वी के आरोग्य संरक्षण हेतु, डॉक्टर, वैद्य औषधि के खर्च में, विहार व्यवस्था, सेवार्थ रखे हुए जैनेतर व्यक्तियों की पगार हेतु, साधु-साध्वी के अध्ययन हेतु, गुरु मंदिर निर्माण एवं तत् सम्बन्धी व्यवस्था में कर सकते हैं। पूजार्ह गुरु द्रव्य का उपयोग देवद्रव्य, ज्ञान द्रव्य, पूजार्ह एवं भोगार्ह गुरु द्रव्य के अलावा अन्य किसी भी द्रव्य में नहीं कर सकते। ____ 3. लुंछन गुरु द्रव्य- रुपये पैसे आदि को हाथ में लेकर गुरु महाराज के ऊपर से तीन बार गोल घुमाते हुए उन्हें गुरु चरणों में रख देना लुंछन द्रव्य कहलाता है। लुंछन द्रव्य का उपयोग साधु-साध्वी वैयावच्च में, पौषधशाला निर्माण में, देवद्रव्य या ज्ञान द्रव्य में हो सकता है। यदि पूर्व परम्परा से पुजारी या बैण्ड वाले को दी जाती हो तो उसे भी दे सकते हैं। अपवादत: गुरु आदेश के अनुसार अन्य क्षेत्र में भी उपयोग कर सकते हैं। जैसे- जिन शासन के न्याय विशारद, उपाध्याय यशोविजयजी म.सा. ने गुरु पूजन की राशि को स्कूल के बालकों की पुस्तक हेतु खर्च करने का आदेश दिया था। अपवाद मार्ग का सेवन गुरु आज्ञा से ही हो सकता है। गुरु द्रव्य का उपयोग विहारधाम या उपाश्रय की व्यवस्था हेतु नहीं हो सकता। गुरु द्रव्य को देवद्रव्य मानते हुए महोपाध्याय समयसुंदरजी सामाचारी शतक में कहते हैं- "ज्ञानस्व देवस्वं गुरुस्ववत्।" अर्थात ज्ञान द्रव्य देवद्रव्य होता है गुरु द्रव्य की भाँति। यद्यपि वर्तमान में ज्ञान द्रव्य ज्ञान खाते में और गुरु द्रव्य गुरु वैयावच्च खाते में प्रयोग किया जाता है।
द्रव्य सप्ततिका के अनुसार पंचमहाव्रतधारी महापुरुषों के आगे गहुँली, गुरु पूजन एवं तत्सम्बन्धी बोलियों का द्रव्य जिनमन्दिर के जीर्णोद्धार एवं नवनिर्माण में लगाना चाहिए। आचार्य श्री कीर्तियशसूरिजी म.सा. के अनुसार पूजार्ह गुरु द्रव्य का उपयोग गुरु महाराज के किसी भी कार्य में नहीं हो सकता। इसे गुरु महाराज से ऊँचे स्थान जैसे कि जिनमन्दिर निर्माण या जीर्णोद्धार हेतु कर सकते हैं। परमात्मा की अंगपूजा में इस द्रव्य का प्रयोग नहीं हो सकता।
शंका- गुरु द्रव्य का प्रयोग गुरु महाराज की सेवा वैयावच्च आदि में क्यों नहीं कर सकते? ___समाधान- गुरु द्रव्य को देवद्रव्य मानने वाले ग्रन्थकारों का कहना है कि पंचमहाव्रतधारी साधु-साध्वी द्रव्य के त्यागी होते हैं अत: उनके निमित्त एकत्रित