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330... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... 57. ललितविस्तरा टीका, पृ. 45 58. अष्टौ दिवसान् यावत्, पूजाऽविच्छेदतोऽस्य कर्तव्या। दानं च यथाविभवं, दातव्यं सर्वसत्त्वेभ्यः ॥
प्रकरण,गा. 16 59. विघ्नोपशमन्याद्या, गीताभ्युदय प्रसाधनी चान्या।
निर्वाण साधनीति च, फलदा त यथार्थ संज्ञाभि । प्रवरं पुष्पादि सदा, चाद्यायां सेवते तु तद्दाता। आनयति चान्यतोऽपि हि, नियमादेव द्वितीयायाम ॥ त्रैलोक्यसुन्दरं यद् मनसा, पादयति तत्तु चरमायाम् । अखिल गुणादिक सद्योगः, सारसद् ब्रह्मयागपरः ॥
षोडशक प्रकरण, गा. 10-12 60. पंचाशक प्रकरण, गा. 20-21 61. वही, गा. 14-15 62. योगबिन्दु, गा. 116 63. पंचवस्तुक, गा. 1141-1142 64. धर्मबिन्दु प्रकरण, सू. 75 65. पद्मचरित, 156 66. जिनस्नात्रविधि, गा. 37 67. संवेगरंगशाला, 1535-1538, 1543, 1553 68. स्नात्रं-विलेपन-विभूषण-पुष्प-दाम, धूप-प्रदीप-फल-तन्दुल-पत्र पूर्णः ।
नैवेद्य वारि-वसनैश्चमरा-ऽऽतपत्र, वादित्र-गीत-नटन स्तुति कोश वृद्धया । इत्येकविंशतिविधा जिनराजपूजा, ख्याता सुरासुरगणेन कृता सदैव । खण्डीकृता कुमतिभिः कलिकालयोगाद्यद्यत्प्रियं तदिह भाववशेन योज्यम् ।।
धर्मसंग्रह, गुजराती भाषान्तर, पृ. 380 69. धर्मरत्नकरण्डक, गा. 48-49, 51 70. चैत्यवंदन महाभाष्य, 209-210, 212 71. पुप्फाभिसत्थुईहिं, तिहाऽहवा पूयमट्ठहा कुज्जा। फल-जल-धूवक्खय-वास, कुसुम नेवज्ज दीवेहिं ।।
उपदेशमाला दोघट्टी टीका, पत्र 417