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जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 299 भगवतीसूत्र में तुंगिया नगरी के श्रावकों की चर्चा करते हु उनके द्वारा जिनपूजा किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा गया है " ण्हाया कय बलिकम्मा” अर्थात स्नान करके देवपूजा की। इसी सूत्र में जंघाचारण और विद्याचरण मुनियों द्वारा नन्दीश्वर द्वीप एवं मानुषोत्तर पर्वत की शाश्वत जिनप्रतिमाओं को तथा भरतक्षेत्र की अशाश्वत जिन प्रतिमाओं को वंदन करने का वर्णन मिलता है। 7
इसी सूत्र में चमरेन्द्र के अधिकार में तीन शरण की चर्चा करते हुए अरिहंत परमात्मा के चैत्य एवं भावित आत्मा से युक्त अणगार साधुओं का वर्णन है।
छठवाँ आगम ज्ञाताधर्मकथासूत्र में सम्यग्दृष्टि श्राविका द्रौपदी द्वारा शादी के पहले जिनप्रतिमा की सर्वोपचारी पूजा करने का वर्णन सोलहवें अध्याय में प्राप्त होता है।
इस सूत्र में द्रौपदी को सम्यग्दृष्टि श्राविका कहा गया है क्योंकि वह प्रतिदिन परमात्म पूजा करती थी । यहाँ तक कि अपने विवाह के प्रसंग पर भी उसने जिनप्रतिमा की पूजा को प्रथम कर्त्तव्य समझा । अन्तःपुर में आए मिथ्यात्वी नारद ऋषि को वह वन्दन नमस्कार नहीं करती है तथा पद्मोत्तर राजा के द्वारा अपहरण किए जाने पर बेले के पारणे आयम्बिल करती है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि भगवान नेमिनाथ के समय में भी जिनपूजा का विधान और स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही पूजा का अधिकार होता था ।
सातवें अंग आगम उपासकदशासूत्र में आनंद आदि दस श्रावकों के द्वारा जिनप्रतिमा को वन्दन पूजन करने का उल्लेख करते हुए अन्य तीर्थों (चरकादि) के देव एवं उनके द्वारा गृहीत अरिहंत चैत्य को वंदन करना वर्जनीय बताया गया है।10
श्री अनुत्तरोपपातिकसूत्र एवं अन्तकृतदशासूत्र में द्वारिका नगरी के अधिकार में जिनप्रतिमा एवं जिनमंदिर का उल्लेख है। 11
श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र के तीसरे संवर द्वार में जिन प्रतिमा को कर्म निर्जरा का हेतु बताते हुए साधुओं को उसकी वैयावच्च करने का निर्देश दिया हैं। 12 विपाकसूत्र में सुबाहु आदि के द्वारा जिनप्रतिमा की पूजा करने का उल्लेख है। 13 आगमों के साथ उपांग सूत्रों में भी जिनप्रतिमा पूजन के अनेक विवरण प्राप्त होते हैं।