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जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 295
तक अनेकशः रचनाएँ इस विषय पर की गई हैं। लाखों वर्ष प्राचीन जिन प्रतिमाएँ एवं हजारों वर्ष पुराने आगम शास्त्र जिन प्रतिमा की शाश्वतता के मुख्य प्रमाण हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से मंथन करें तो विविध आगमों में भिन्न-भिन्न हेतुओं से जिनप्रतिमा का उल्लेख प्राप्त होता है। मुख्य रूप से महाकल्प सूत्र, भगवती सूत्र, उववाईसूत्र, आचारांगसूत्र, ज्ञातासूत्र, उपासकदशांग सूत्र, कल्प सूत्र, व्यवहार सूत्र, आवश्यक सूक्त, शालीभद्र चारित्र, राजप्रश्नीय सूत्र, स्थानांगसूत्र, महानिशीथ सूत्र, औपपातिक सूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, समवायांग सूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र, जीवाभिगम सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र, जीतकल्प सूत्र आदि इस विषय में द्रष्टव्य हैं।
इसी प्रकार भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्यों में मूर्तिपूजा आदि से सम्बन्धित उल्लेख अन्य जैनागम, उनकी नियुक्ति एवं भाष्य में भी प्राप्त होता है । यदि मध्यकालीन साहित्य के विषय में चिंतन करें तो इस काल में विशेष रूप से चैत्यवास परम्परा के कारण बहुत से परिवर्तन जिनपूजा के संदर्भ में हुए। इसी के साथ इस विषय पर विस्तृत साहित्य सर्जन भी हुआ। हरिभद्रसूरि, हेमचन्द्राचार्य, जिनप्रभसूरि आदि अनेकशः आचार्यों ने इस विषय पर बृहद कार्य किया है।
आचार्य हरिभद्रसूरि कृत पूजाष्टक, पूजाविधि विंशिका, ललितविस्तरा षोडशक प्रकरण, पंचाशक प्रकरण, योगबिन्दु, पंचवस्तुक, धर्मबिन्दु प्रकरण आदि।
आचार्य उमास्वाति रचित पूजा प्रकरण, शालिभद्रसूरि द्वारा रचित चैत्यवंदन भाष्य, शांतिसूरिजी रचित चैत्यवंदन महाभाष्य, देवेन्द्रसूरि द्वारा कृत लघु चैत्यवंदन भाष्य, धर्मघोषसूरिजी द्वारा रचित संघाचारवृत्ति, संघदासगणि कृंत व्यवहार भाष्य, धर्मदासगणि कृत उपदेशमाला, हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित योगशास्त्र एवं त्रिषष्टिशलाका पुरुष चारित्र, पूर्व चिरंतनसूरिकृत श्राद्धदिन कृत्य, वर्धमानसूरिकृत धर्मरत्न करंडक एवं आचारदिनकर, रत्नशेखरसूरि कृत श्राद्धविधि प्रकरण एवं आचार प्रदीप, अभयदेवसूरिकृत सामाचारी प्रकरण और नव अंग टीकाएँ, जिनप्रभसूरिकृत आत्मप्रबोध, आचार्य रविषेण कृत पद्मचरित्त एवं सर्वोपचारी पूजा, चंद्रप्रभसूरि कृत दर्शनशुद्धि प्रकरण, सोमप्रभसूरि कृत