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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ... 249
है, वैसे-वैसे उसकी आंतरिक शक्तियाँ अधिक जागृत होती हैं। स्वयं से ही स्वयं की समस्याओं का समाधान होता है और भक्त हृदय उसे परमात्मा की कृपा मानता है। परमात्म भक्ति तो मात्र निमित्त बनती है, उपादान तो व्यक्ति का अपना ही होता है।
प्रार्थना करते हुए मन में इन्हीं विशिष्ट शक्तियों का जागरण होने से समस्याओं का समाधान होता है। अतः पूर्ण आत्मसमर्पण एवं जागृति के द्वारा शरीर के रोम-रोम एवं हृदय से की गई प्रार्थना सदैव निश्चित रूप से फलीभूत होती है।
जिन दर्शन एक लाभपूर्ण अनुष्ठान
जिन दर्शन की महिमा का शास्त्रों में सर्वत्र गुणगान किया गया है। आगमों में जनप्रतिमा को साक्षात जिनेश्वर की उपमा दी गई है। जिनेन्द्र दर्शन को स्वर्ग का सोपान माना गया है। शास्त्रकारों के अनुसार समस्त गुणों के धारक श्री अरिहंत परमात्मा के गुणों का भक्तिभाव पूर्वक गुणगान - कीर्तन-दर्शन आदि करने से आत्मा में रहे हुए ज्ञान - दर्शन - चारित्र आदि गुण एवं आंतरिक प्रकट होती है। जिन मूर्ति हमारे निज स्वरूप का दर्पण है। परमात्म दर्शन से आत्मा में सुप्त रूप से रही हुई पूर्णता प्रकट रूप से अनुभव में आती है। प्रभु के नाम का स्मरण एवं गुणगान प्रभु धाम को प्राप्त करने का सुलभ रास्ता है। प्रभु के स्मरण एवं गुणगान द्वारा सर्व पापों का क्षय तथा विघ्न एवं दुखों का सर्वथा अंत होता है।
भक्ति वृद्धि का राजमार्ग त्रिकाल पूजा
हर क्षेत्र के लिए कुछ कर्त्तव्य, कुछ अधिकार और कुछ मर्यादाएँ अवश्य रूप से निहित होती हैं। श्रावक के आवश्यक कर्त्तव्यों का वर्णन करते हुए आचार ग्रन्थों में जिनपूजा का भी उल्लेख किया गया है। श्रावकों के लिए नित्य त्रिकाल पूजा का विधान किया गया है। गृहस्थ के दैनिक जीवन में परमात्म भक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संसार में गृहस्थ जीवन यापन करते हुए भी परमात्मा के साथ भक्त का निरंतर जुड़ाव बना रहे, शुभ भावों में वर्धन हो, जीवन में नैतिकता, समर्पण, निष्ठा आदि सद्गुणों का निर्माण हो तथा आत्म लक्ष्य का भान रहे, इन भावों से त्रिकाल पूजा का विधान किया गया है।