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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...241 पूजा के लिए वस्त्र रेशमी हो या सूती? जैन शास्त्रों में पूजा हेतु सफेद रेशमी वस्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। श्री निशीथ सूत्र में उदयन राजा की पट्टरानी प्रभावती के द्वारा श्वेत रेशमी वस्त्रों के प्रयोग का वर्णन है। इसके पीछे अनेक वैज्ञानिक एवं रहस्यात्मक तथ्य जुड़े हुए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार रेशमी वस्त्र reflective होता है। वह वातावरण में रही अशुद्धि को ग्रहण नहीं करता अर्थात उसे Reject कर देता है। पूर्व काल में माताएँ जब अंतराय (M.C.) में होती थी तो बच्चों को रेशमी वस्त्र पहनाए जाते थे जिससे माता की अशुचि का प्रभाव बच्चों पर नहीं पड़ता था। आजकल भी कुछ लोग यह सावधानी रखते हैं। अंजनशलाका आदि विधानों में आचार्यों द्वारा रेशमी वस्त्र धारण करने का विधान प्राच्य ग्रन्थों में प्राप्त होता है। कई लोग रेशमी वस्त्र की निर्माण प्रक्रिया में होती हिंसा के कारण उसके प्रयोग का विरोध करते हैं। रेशमी वस्त्र के निर्माण में कोसेटा नामक जंतु के लाररस का प्रयोग किया जाता है अत: वह अशुद्ध एवं हिंसक दोनों है। इसी कारण कुछ लोग सूती वस्त्र के प्रयोग का पक्ष रखते हैं। ___ यदि सूक्ष्मता पूर्वक विचार करें तो पूजा हेतु प्रयुक्त टेरीलीन, टेरीकॉटन, टेरीवूल, नायलोन, रेयोन, कोटन आदि वस्त्र भी पूर्ण रूपेण अहिंसक नहीं होते। सूती कपड़े को मसराइज करने के लिए मटन टेलों का प्रयोग होता है। हर वस्त्र के निर्माण में थोड़ी-बहुत हिंसा होती ही है। आजकल मार्केट में Artificial Silk उपलब्ध है जिसके लिए कीड़ों को मारा नहीं जाता। यदि पूजा के वस्त्र निर्माण के निमित्त विशेष रूप से कीड़ों की हिंसा की जाती हो तो उन वस्त्रों का प्रयोग पूजा हेतु नहीं करना चाहिए। Pure Silk के अतिरिक्त मटका, रेशम आदि ऐसे कई वस्त्रों के प्रकार हैं जो बिना जीव हिंसा के भी बनाए जा सकते हैं। सूती वस्त्र के निर्माण में स्थावर काय जीवों की हिंसा होती है जबकि रेशमी वस्त्र के निर्माण में कोसेटा नामक बेइन्द्रिय जीव की हिंसा होती है। स्थावरकाय की हिंसा से निर्मित वस्त्रों की अपेक्षा त्रसकाय से निर्मित वस्त्रों में शुद्धता का प्रमाण अधिक होता है। प्राचीनकाल में ऋषि मुनियों द्वारा व्याघ्रचर्म, सिंहचर्म आदि का प्रयोग किया जाता था। उनकी प्राप्ति भी उन जीवों की हिंसा या मृत्यु के बाद ही होती है। परंतु इनमें अशुद्ध तत्त्वों के परिष्कार की विशेष शक्ति होने से ऋषि-मुनियों
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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