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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ... 233 प्रदक्षिणा तीन ही क्यों?
प्रदक्षिणा पूजाविधि का एक प्रमुख अंग है। यह विधान प्रायः सभी परम्पराओं में देखा जाता है । व्यवहार में प्रसन्नता आदि को अभिव्यक्त करने हेतु तत्सम्बन्धी व्यक्ति या वस्तु के अगल-बगल चक्कर लगाया जाता है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम परमात्मा है अतः उनके आदर सम्मान हेतु प्रदक्षिणा दी जाती है। जीवन के प्रत्येक कार्य में परमात्मा को केन्द्र में रखने का निर्देश भी इससे प्राप्त होता है।
प्रदक्षिणा विनय का द्वार है। इसके द्वारा बाहर में भटकते हुए मन को परमात्मा के समीप लाया जाता है। जिससे परमात्मा के प्रति आकर्षण एवं अभिलाषा के संस्कार प्रकट होते हैं। प्रदक्षिणा एक प्रकार का मंगल है। इसके पालन से समस्त कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होते हैं।
यहाँ प्रश्न होता है कि प्रदक्षिणा तीन ही क्यों दी जाए?
जब भी किसी तथ्य को निश्चित करना हो या बात को पक्की करनी हो तो उसका तीन बार उल्लेख किया जाता है। तीन प्रदक्षिणा देकर रत्नत्रय की प्राप्ति एवं सांसारिक प्रवृत्तियों के त्याग की भावना को मजबूत किया जाता है। तीन की संख्या समूह की सूचक है। अतः जिसकी शक्ति अधिक प्रदक्षिणा देने की न हो वह तीन प्रदक्षिणा के द्वारा भी क्रिया को पूर्ण कर सकता है। 14
प्रदक्षिणा दाएं से बाएं देने का रहस्यभूत कारण है कि दाएं से बाएं यह सृष्टिक्रम है। आज तक विरुद्धगति से जीवन गुजारा, उन्मार्ग का सेवन किया पर अब सीधा चलते हुए सन्मार्ग के द्वारा मोक्ष मंजिल को प्राप्त करूं। मंदिर के पवित्र वातावरण में स्थित Electron, Neutron और Proton आदि की गति भी Clockwise (दक्षिणावर्त्त) होती है। इसका प्रभाव दर्शनार्थी के भाव एवं शरीर दोनों पर पड़ता है। शादी के समय पाणिग्रहण, सलाम, भोजन - लेखन आदि मुख्य कार्य दाएं हाथ से ही किए जाते हैं।
संक्षेप में दाहिनी दिशा पवित्र, मुख्य, कार्यसाधक एवं सीधा होने से उसी दिशा से प्रदक्षिणा प्रारंभ की जाती है।
पूजा आदि मांगलिक कार्यों में पूर्व या उत्तर दिशा की प्रमुखता क्यों ? धार्मिक आराधना-साधना हेतु पूर्व एवं उत्तर दिशा का ही उल्लेख प्रायः देखा जाता है। व्यवहार जगत में भी इनकी उपयोगिता सर्वमान्य है। सूर्य पूर्व