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226... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
जिनपूजा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को आकर्षित किया जा सकता है। पूजादि में प्रयुक्त विभिन्न मुद्राओं के द्वारा आंतरिक शक्तियों को जागृत कर मनवांछित कार्य की सिद्धि की जा सकती है। पूजा के द्वारा मानसिक एकाग्रता एवं प्रसन्नता प्राप्त होती है। जैसे माता-पिता, मित्र- स्वजन आदि का चित्र देखते ही अन्तरंग में सम्मान एवं आत्मीयता के भाव स्वयमेव जागृत होते हैं, वैसे ही परमात्मा का बिम्ब देखते ही जिनधर्मानुरागी के मन में वीतराग परमात्मा के प्रति अनायास प्रीति उमड़ आती है। इसे ही शास्त्रों में प्रीति अनुष्ठान कहा गया है।
एक बार तो जिनप्रतिमा का दर्शन होने के बाद व्यक्ति कितना भी तनाव में हो वह उससे मुक्त हो जाता है। परमात्मा को द्रव्य समर्पित करते हुए मन में जो श्रद्धा भाव जागृत होते हैं उसके कारण विचारों एवं भावों में निर्मलता आती है। पुष्प, धूप, चंदन आदि सुगन्धित द्रव्यों की खुशबू से दर्शनार्थी को आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। द्रव्य अर्पण करने से द्रव्य के प्रति रहा हुआ आसक्ति भाव न्यून होता है। वर्तमान में द्रव्य अधिकरण को लेकर बढ़ता हुआ व्यक्तिगत एवं पारिवारिक मन-मुटाव और मानसिक हलचल को न्यून करने का यह एक सार्थक उपाय है।
चैत्यवंदन आदि क्रिया करते हुए जीव के स्वाभाविक गुणों जैसे करुणा, दया आदि सद्वृत्तियों का विकास होता हैं । परमात्मा की प्रशान्त मुखमुद्रा क्रोध, आवेश, ईर्ष्या, घृणा आदि मलिन भावों को दूर कर मन में मैत्री भाव का सिंचन करती है।
जिनपूजा एक ऐसी मनोवैज्ञानिक विधि है जिसका सम्यक परिपालन मानसिक स्थिरता एवं भावनात्मक निर्मलता को प्राप्त करवाती है । परमात्म भक्ति के जरिए प्रायश्चित्त करके हृदय को पवित्र कर सकते हैं। चित्त में उत्पन्न होने वाली अतृप्त कामनाओं का नाश जिनपूजा के द्वारा ही संभव है । जब हम भावों के दर्पण में विनम्रता रूपी थाली, क्षमा की आरती, प्रेम का घृत, दृढ़ विश्वास का नैवेद्य आदि द्रव्य समर्पित करते हैं तो प्रायश्चित्त रूपी आरती में अहंकार रूपी राक्षस जलकर भस्म हो जाता है। इस तरह जिनेश्वर परमात्मा की पूजा विघ्नों का नाश करती है, उपसर्गों का शमन करती है और निजत्व में जिनत्व का दर्शन करवाती है।