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202... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... समयानुसार द्रव्य को जीर्णोद्धार, तीर्थ रक्षा आदि कार्यों में अवश्य उपयोग करना चाहिए। मंदिरों का पैसा बैंक आदि में जमा नहीं करवाना चाहिए। यदि कहीं कारणवश जमा हो तो ट्रस्टियों को उसके क्रेडिट आदि के आधार पर लोन नहीं उठाना चाहिए। देवद्रव्य का व्यय गुरु भगवंतों के निर्देशानुसार आगमोक्त रीति से करना चाहिए। ___ पदाधिकारियों का आचरण भी समाज के लिए प्रेरक होना चाहिए। अन्य कई स्थानों पर उनके आचरण से ही सम्पूर्ण समाज की छवि बनती है। ट्रस्टी बारह व्रतों का धारक होना चाहिए और यदि सभी व्रत धारण न कर सके तो भी कम से कम एकाध व्रत अवश्य ग्रहण करना चाहिए। रात्रि भोजन, अभक्ष्य आदि का त्याग तो अवश्य करना ही चाहिए। .
जिनपूजा, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि श्रावक के आवश्यक कर्तव्यों का पालन एवं परिवार में सुसंस्कारों का निर्माण करते हुए समाज को भी धर्म मार्ग पर प्रेरित करना चाहिए। साधु भगवंतों के समागम का अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए तथा उनकी समुचित व्यवस्था करने का प्रयास भी करना चाहिए।
चढ़ावे आदि की रकम स्वयं को जल्दी से जल्दी जमा कर अन्य लोगों से भी जल्दी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यदि कोई बोली की राशि देने में विलम्ब करे तो उनके साथ किसी भी प्रकार का अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए। पारस्परिक वैर-विरोध को धर्म क्षेत्र में नहीं लाना चाहिए। मांसाहार, मदिरा,जुआ आदि सप्तव्यसनों का सेवन तो कदापि नहीं करना चाहिए। डिस्को, क्लब आदि धर्म प्रध्वंसक प्रवृत्ति वाले स्थानों पर जाने से बचना चाहिए।
पदाधिकारियों को अपना कुछ समय नियत रूप से मंदिर की व्यवस्था हेत देना चाहिए। पेढ़ी पर बैठकर बही-खाते आदि की जाँच करनी चाहिए। मैनेजर या कर्मचारियों के भरोसे मंदिर का हिसाब-किताब छोड़कर मात्र पेढ़ी पर बैठकर बातें नहीं करनी चाहिए।
पदाधिकारियों को अपनी व्यवस्था के अनुसार उत्सव-महोत्सव आदि का आयोजन नहीं करना चाहिए। समस्त आयोजन संघ-समाज की व्यवस्थानुसार करना चाहिए। अनुष्ठानों के आधार पर समाज में मतभेदों का पोषण मुखिया वर्ग को नहीं करना चाहिए।
मंदिर के कर्मचारियों का चयन भी छानबीन पूर्वक करना चाहिए। अभक्ष्य