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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...161 होकर जड़मूल से विनष्ट हो जाए एवं चंदन के समान समतारस रूपी शीतलता मेरे रोम-रोम में व्याप्त हो जाए।
हे आत्म निरंजन! मेरे पास चढ़ाने हेतु गोशीर्ष चंदन या नंदनवन का केशर नहीं है। मलयगिरि के चन्दन एवं काश्मीर के केशर को ही आप मेरे उत्तम भावों के साथ स्वीकार करें। इस चंदन पूजा के प्रभाव से मुझे ज्ञान की खुशबू से महकता हुआ समतारस प्राप्त हो। __आपका स्पर्श करने मात्र से मेरे शरीर, हृदय एवं भावों आदि का शुद्धिकरण होता है। चन्दन पूजा के माध्यम से यह शुद्धता सतत बनी रहे यही अन्तर प्रार्थना करता हूँ। पुष्पपूजा से महकाएँ आत्म सुमन ___ अरिहंत परमात्मा को ताजे, खिले हुए, अखंड एवं सुगंधित पुष्प चढ़ाते हुए मन में निम्नोक्त भावनाएँ करनी चाहिए
हे त्रिलोकीनाथ! इस विश्व में पुष्पों को सर्वश्रेष्ठ भेंट के रूप में माना गया है। मैं भी श्रद्धासिक्त होकर श्रेष्ठ पुष्पों की भेंट लाया हूँ। पुष्प जैसे कोमल, विकसित और सुगंधित होते हैं, उसी तरह मेरी आत्मा भी काम-विकार तथा कषाय की दुर्गन्ध से मुक्त हो एवं मेरा हृदय सभी जीवों के प्रति कोमल एवं निर्मल भावों से युक्त बने। ___हे दयासिन्धु! जिस प्रकार फूल आपकी शरण में आकर कष्ट एवं किलामनाओं से मुक्ति पाकर क्लेश रहित हो जाता है तथा अपनी खुशबू से चारो दिशाओं को महकाता है। उसी प्रकार मैं भी आपकी शरण में आया हूँ, मुझे भी क्लेश, संताप आदि से रहित करते हुए परमोच्च वीतराग भाव से सुवासित बनाएं। इस केवलज्ञान रूपी सुवास के द्वारा भव्य प्राणियों को तत्त्वों के सत्य स्वरूप से सुवासित कर सकूँ और अंतत: मोक्ष प्राप्त कर शाश्वत निर्भयता को प्राप्त करूं, ऐसा वरदान दें।
हे विश्वोद्धारक! आपकी चरणों में चढ़ने वाला पुष्प जिस प्रकार भव्य बन जाता है, वैसे ही मुझे भव्यत्व अर्थात सम्यक्त्व की प्राप्ति हो। हे गुण श्रेष्ठ! आपकी आत्मा का प्रत्येक प्रदेश अनंत गुणों से महक रहा है। आपकी श्वासोछ्वास में भी मंदार एवं पारिजात जैसे पुष्पों की महक है। आप तो पुष्पहार एवं स्वर्ण अलंकारों के बिना भी विश्व के श्रेष्ठ पद वीतरागता एवं सर्वज्ञता