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पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म.....xili
जिनपूजा मनुष्य जन्म को सुकृत करने का श्रेष्ठ माध्यम है। इसके द्वारा व्यक्ति का धर्म रूपी जड़ों से जुड़ाव बना रहता है । परन्तु आज अपूर्ण जानकारी के कारण अनेक अविधियाँ जिनपूजा में प्रविष्ट हो चुकी हैं। वर्तमान प्रासंगिक कई पूर्वकालीन नियम आज लुप्त हो चुके है। कई अनावश्यक विधान भी प्रविष्ट हो चुके हैं। साध्वी सौम्यगुणाश्रीजी ने ऐसे ही कई विषयों पर ध्यान आकर्षित करने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। इन्होंने जिनपूजा का ऐतिहासिक अनुशीलन करते हुए अब तक की विकास यात्रा का सुंदर एवं प्रमाण युक्त वर्णन किया है।
जिनपूजा वर्तमान में सर्वाधिक आचरित विधान है। इस विषय पर अनेकशः पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। परंतु यह विवरण विकीर्ण रूप से अलगअलग स्थानों पर प्राप्त होता है । साध्वीजी ने आधुनिक संदर्भों में उन विषयों की उपादेयता को सिद्ध करते हुए आज की जीवन शैली की अपेक्षा से संशोधित एवं प्रामाणिक स्वरूप प्रस्तुत किया है । आजकल बिना समझे हो रहे परम्पराओं के अनुकरण में साध्वीजी का प्रयास दिशाबोधक यंत्रवत होगा। मैं साध्वीजी के कठिन प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूँ एवं आशा करता हूँ वे इसी प्रकार दैनिक आराधना उपयोगी विषयों पर अपना चिंतन एवं आगमों का मंथन प्रस्तुत कर समाज को लाभान्वित करती रहेंगी ।
चार भागों में प्रस्तुत शोध खण्ड का यह मात्र एक विषय है। साध्वीजी ने ऐसे अनेक विषयों पर कार्य किया है जो जिज्ञासु वर्ग के लिए पठनीय एवं आचरणीय है। मेरे अनुसार अब तक का सबसे विशद शोध प्रबन्ध सौम्यगुणा श्रीजी ने ही प्रस्तुत किया है । यद्यपि विधि-विधान स्वयं एक विस्तृत विषय है परंतु ऐसे विषयों पर कार्य करने हेतु धैर्य एवं दीर्घ दृष्टि का होना भी आवश्यक है। साध्वीजी ने तीव्र बुद्धि के साथ गांभीर्य गुण का परिचय देते हुए अपने शोध कार्य को शिखर तक पहुँचाया है। शोध पिपासुओं के लिए विधि-विधान सम्बन्धी मार्ग पर आगे बढ़ने हेतु इन्होंने मात्र नींव ही नहीं अपितु पूरा ढांचा ही तैयार कर दिया है जिस पर अब बड़ी से बड़ी बिल्डिंग का निर्माण हो सकता है। साध्वीजी ऐसे ही संरचनात्मक कार्य करते हुए समाज को लाभान्वित करती रहें यही अभिलाषा है।
डॉ. सागरमल जैन
प्राच्य विद्यापीठ,
शाजापुर