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जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...83 • चामर पूजा रंग मंडप में अर्थात मूल गर्भगृह के बाहर की जाती है।
• अन्य आराधकों को हमारे नृत्य से विक्षेप न हो इसका विवेक अवश्य रखना चाहिए।
• दोनों हाथों में चामर लेकर वाजिंत्र नाद के साथ नृत्यपूजा करनी चाहिए। दो चामर न हों तो दाएँ हाथ में चामर एवं बाएँ हाथ से नृत्य की विविध मुद्राएँ करते हुए नृत्य करना चाहिए।
• भक्ति आदि में फिल्मी नृत्य या नागिन आदि का नृत्य नहीं करना चाहिए।
• चामर पूजा करते समय अपने पैरों को धीरे-धीरे नचाते हुए हाथों से भी नृत्य का हाव-भाव प्रकट करना चाहिए।
' • जिन मंदिर में रखे हुए चामर को गुरु महाराज के समक्ष अथवा नाटक आदि में राजा आदि के सामने नहीं ढुलाना चाहिए। यदि उपयोग में लिया हो तो तद्योग्य नकरा मंदिर में जमा करा देना चाहिए। दर्पण दर्शन एवं पंखी बिंझने की विधि ___ • परमात्मा को हृदय में बसाने के प्रतीक स्वरूप परमात्मा की दर्पण पूजा की जाती है।
• दर्पण पूजा के लिए उपयोगी दर्पण Aluminium, Plastic, कागज आदि में Frame किया हुआ नहीं होना चाहिए। सामर्थ्य हो तो सोना, चाँदी अथवा पीतल का सुंदर नक्काशी किया हुआ दर्पण उपयोग में लेना चाहिए।
• दर्पण में मात्र परमात्मा के मुख का दर्शन करना चाहिए। खुद का मुख देखने के बाद उस दर्पण का प्रयोग परमात्मा के लिए नहीं करना चाहिए।
• टूटा हुआ, Scratch लगा हुआ अथवा खराब हुआ पुराना दर्पण मन्दिर के प्रयोग में नहीं लेना चाहिए।
• दर्पण पूजा के लिए दर्पण के पृष्ठ भाग को हृदय के पास इस प्रकार स्थापित करें कि उसमें परमात्मा के दर्शन हों। इस समय दर्पण के समान परमात्मा को हृदय में बसाने की भावना भी करनी चाहिए।
• दर्पण में प्रभु के दर्शन होते ही चारो तरफ घूम सकें ऐसी पंखी के द्वारा परमात्मा को बिंझाना चाहिए।