________________
76... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... गीला करते हुए हाथ से धीरे-धीरे केशर आदि को दूर करना चाहिए। शेष चिपकी हुई केशर आदि को सूती गीले कपड़े से दूर करना चाहिए।
__ • तदनन्तर स्वच्छ जल से भरे हुए कलश के द्वारा अभिषेक करके निर्माल्य को पूरी तरह से दूर करने का प्रयास करना चाहिए, इसके बावजूद भी यदि प्रतिमाजी पर निर्माल्य रह जाए या वह नहीं निकल रहा हो तो कोमलतापूर्वक वालाकुंची का प्रयोग करना चाहिए।
• निर्माल्य पुष्पों को प्रक्षाल में नहीं डालना चाहिए। अभिषेक करने की विधि
• परमात्मा का अभिषेक करने हेतु आठ पट्ट का मुखकोश बांधकर सर्वप्रथम पंचामृत या दूध से और फिर जल से परमात्मा का प्रक्षाल करें।
• प्रक्षाल करते समय मुखकोश को ऊपर-नीचे नहीं करना चाहिए। यदि मुखकोश के बार-बार हाथ लगाएं तो उस समय हाथ धोकर फिर जिनबिम्ब को स्पर्श करना चाहिए।
• पूजार्थी को मौनपूर्वक प्रक्षाल करना चाहिए तथा रंगमंडप में खड़े अन्य भाविक श्रावकों को घंटनाद, शंखनाद, नगाड़ा आदि वाजिंत्र बजाने चाहिए। स्नात्र के दोहे आदि गाने चाहिए।
• अभिषेक करते समय वस्त्र या शरीर का कोई भी भाग परमात्मा को स्पर्श नहीं करे, यह विवेक रखना चाहिए।
• अभिषेक कलश को दोनों हाथों से बहुमानपूर्वक पकड़कर फिर परमात्मा के मस्तक पर धारा देनी चाहिए।
• पंचामृत या दूध से प्रक्षाल होने के बाद पानी का प्रक्षाल चल रहा हो तो दुबारा दूध से प्रक्षाल नहीं करना चाहिए।
• प्रक्षाल होने के पश्चात अंगलुंछन का कार्य चल रहा हो, पूजा चल रही हो अथवा चैत्यवंदन कर रहें हों तब अंगूठे का भी प्रक्षाल नहीं करना चाहिए।
• पंचामृत और पानी का कलश अलग-अलग रखना चाहिए।
• कलश नीचे न गिरे, न्हवण जल के ऊपर पैर आदि न आए, इसका पूर्ण विवेक रखना चाहिए।