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________________ 56... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... हो जाता है, अत: मन्दिर में सांसारिक चर्चा या वार्तालाप करना कर्मबंध का कारण एवं शपथ का खंडन है। निसीहि त्रिक का पालन करते हुए निम्न सावधानियाँ अवश्य रखनी चाहिए। - . प्रथम निसीहि के उच्चारण के बाद किसी भी प्रकार का सांसारिक वार्तालाप मन्दिर परिसर में नहीं करना चाहिए। व्यावसायिक, सामाजिक, कुशलता-अकुशलता या स्वास्थ्य सम्बन्धी चर्चाएँ या पूछताछ भी वहाँ पर वर्जित है। • मन्दिर में फोन ले जाना या फोन पर बातें करना सर्वथा अनुचित है। • किसी भी प्रकार का निमंत्रण मन्दिर परिसर में नहीं देना चाहिए। • कई लोग मन्दिर में जाकर शादी के लिए लड़के-लड़की दिखाते हैं, यह एक सर्वथा गलत प्रक्रिया है। • प्रथम निसीहि के बाद मन्दिर सम्बन्धी आदेश-निर्देश देने की छूट होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रावक वर्ग को मन्दिर का निरीक्षण एवं उसकी साफ-सफाई आदि की देख-रेख अवश्य करनी चाहिए। ट्रस्टियों का अथवा कर्मचारियों का कार्य समझकर उसे गौण करना जिनाज्ञा का भंग है। • अंतिम निसीहि का उच्चारण करने के बाद द्रव्यपूजा सम्बन्धी समस्त विचारों का त्याग कर देना चाहिए। आप चैत्यवंदन कर रहे हैं और भगवान की आरती या प्रक्षाल आदि हो रहा हो तो आपको बीच में चैत्यवंदन विधि नहीं छोड़नी चाहिए। इसी प्रकार आप चैत्यवंदन कर रहे हैं और किसी ने आपका बनाया हुआ साथिया हटा दिया तो मन में किसी भी प्रकार का संकल्प-विकल्प नहीं करना चाहिए। कलह या लड़ाई करने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। इस प्रकार प्रथम त्रिक के माध्यम से परमात्मा का Connection सिर्फ जिन और जिनालय से जुड़ा हुआ रहता है। 2. प्रदक्षिणा त्रिक प्रदक्षिणा शब्द का उद्भव प्र उपसर्ग पूर्वक दक्षिणा शब्द से हुआ है। 'प्र' अर्थात उत्कृष्ट भावपूर्वक और 'दक्षिणा' अर्थात परमात्मा की दायीं ओर से। अत: उत्कृष्ट भावपूर्वक परमात्मा की दायीं ओर से बायीं ओर चक्कर देना प्रदक्षिणा है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप रत्नत्रय की प्राप्ति हेतु तीन प्रदक्षिणा दी जाती है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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