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जिनपूजा - एक क्रमिक एवं वैज्ञानिक अनुष्ठान स्थान ...45 • पूजा के वस्त्रों में बनियान, स्वेटर आदि नहीं पहनने चाहिए। सर्दी के समय यदि शॉल आदि उपयोग में लेते हों तो पूजा के लिए अलग शॉल रखनी चाहिए। पूजा करते समय उसे भी उतारकर रख देना चाहिए।
• उत्तरासंग इस प्रकार पहनना चाहिए कि दाहिना कंधा खुला रहे।
• पूजा के वस्त्र पहनने के बाद कोई घर सम्बन्धी या व्यापार सम्बन्धी कार्य नहीं करना चाहिए।
• पूजा होने के बाद पूजा के वस्त्र शीघ्र उतार देने चाहिए। • पूजा के वस्त्रों से पसीना आदि नहीं पोंछना चाहिए।
• पूजा के वस्त्रों में सब्जी मार्केट आदि नहीं जाना चाहिए। इस तरह वस्त्र शुद्धि का भी पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। ___3. मन शुद्धि-पूजा करते समय राग-द्वेष से मुक्त रहते हुए निर्मल भावों से प्रभु की पूजा करना मन शुद्धि है। परमात्म भक्ति करते हुए मन में किसी भी प्रकार के मलिन विचार, ईर्ष्या-द्वेष आदि के विचार नहीं लाना चाहिए। ऐसा सूत्रकार भगवंत कहते हैं। जैन धर्म में क्रिया से अधिक महत्त्व भावों को दिया गया है। मन के आधार पर ही भावों का निर्माण होता है। अत: मनशुद्धि जिनपूजा का एक मुख्य घटक है। पूजा करते हुए मन शुद्धि के संबंध में निम्न बिन्दुओं पर अवश्य ध्यान रखना चाहिए
• मन्दिर जाते समय किसी के भी प्रति द्वेष आदि के भाव नहीं रखना चाहिए। ___ • परमात्मा के प्रति आदि अहोभाव, भक्तिभाव, पूज्यभाव आदि रखना चाहिए।
• क्रोधादि कषायों, विषय वासनाओं, संकल्प, विकल्प आदि का त्याग करके जिन मन्दिर जाना चाहिए।
• मन्दिर में अन्य लोगों के वस्त्र, सामग्री आदि के बारे में चिंतन नहीं करना चाहिए।
• मन को नियन्त्रित रखने के लिए दृष्टि को नियंत्रण में रखना चाहिए।
• मन्दिर के प्रांगण में सांसारिक या अन्य विकार युक्त बातें नहीं करनी चाहिए जिससे मन के परिणाम विकृत हों। “सवि जीव करूं शासन रसी" की भावना के साथ जिन दर्शन एवं पूजन करना चाहिए।