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ज्ञान गंगोत्री के संवाहक श्री भंसाली परिवार, वाराणसी
भारत की आर्य भूमि आध्यात्मिक आचार-विचारों की प्रसव भूमि रही है। इसी आचार एवं विचारधारा के आधार पर अनेक लोग महास्तंभ बनकर समाज को प्रकाशमान करते हैं । वह जब स्वार्थ के साथ परमार्थ की यात्रा पर निकल जाते हैं तो समाज के लिए वरदान साबित हो जाते हैं। समाज के प्रति उनका समर्पण भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है। बनारस निवासी भंसाली परिवार अपने कर्तृत्त्व द्वारा समाज को 'कर्मण्येवाधि कारेषु' का मूक संदेश देता है।
'कार्य कहने से नहीं करने से पूर्ण होगा' इसी लक्ष्य से श्री मनमोहनजी भंसाली ने पीपाड़ से बनारस स्थानांतरण किया। श्रीमद् रायचंदजी के जीवन चरित्र से प्रभावित होकर गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी समस्त सांसारिक मोह माया का त्याग कर दिया था। अपना कारोबार भाई बलवंतराजजी भंसाली को सौंपकर आप लच्छवाड के जंगलों में ध्यानस्थ हो गए। आप ही की फुलवारी आज बनारस के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। आपके सुपुत्र श्री धनपतराज भंसाली तथा भतीजे मृगेन्द्रराज एवं ललितराज भंसाली काशी में आपकी प्रतिष्ठा को बढ़ा रहे हैं।
श्री ललितराज भंसाली का जीवन बनारस समाज के लिए किसी कोहिनूर रत्न से कम नहीं है। यद्यपि आपका जीवन अनेक संघर्षों से युक्त रहा फिर भी धर्म क्षेत्र में आपने कभी दिलाई नहीं आने दी। जाप, सामायिक, प्रभु दर्शन आदि नियमों का पालन आप दृढ़ता के साथ करते हैं। तीर्थ यात्रा एवं परमात्म भक्ति हेतु आप सदा लालायित रहते हैं । चढ़ावे लेकर अष्टप्रकारी पूजा करना, सोने के तिलक, छत्र आदि चढ़ाना आपकी अतुल परमात्म भक्ति का ही सूचक है।