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________________ 38... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... जल लेकर पंचामृत अथवा दूध-पानी का मिश्रण तैयार करें। • चंदन घिसने की शिला (ओरसिया) के आस-पास के क्षेत्र का जयणापूर्वक निरीक्षण एवं प्रमार्जन करें। फिर चन्दन की लकड़ी को धोकर एवं विलेपन हेतु बरास, केशर आदि सुगंधित द्रव्यों को मिलाकर उन्हें तैयार करें। पूजा के लिए अलग रस को कटोरी में निकालें। • सुगन्धित कोमल पुष्पों को अच्छी तरह उनमें देखकर जीव आदि हों तो उन्हें दूर करें। फिर विवेकपूर्वक उन्हें पुष्प चंगेरी (फूलों की टोकरी) में रखें। • इसी क्रम में धूप, दीपक, अक्षत आदि समस्त द्रव्य तैयार करें। • जिनाज्ञा को शिरोधार्य करने हेतु जैन धर्म की प्राप्ति का गौरव करते हुए तिलक लगाएँ। तिलक लगाने हेतु पद्मासन मुद्रा में चौकी पर बैठे एवं ऐसी जगह पर तिलक लगाएं जहाँ परमात्मा की दृष्टि नहीं आती हो। यहाँ पुरुष वर्ग बादाम के आकार का एवं महिलाएं बिन्दी लगाएं। • फिर पूजा की सामग्री को लेकर गंभारे के समीप जाएं। • मधुर एवं गंभीर स्वर में परमात्मा की भावपूर्ण स्तुति करें। • समस्त सामग्री को धूप के ऊपर फिराएं। • अंगपूजा सम्बन्धी सामग्री को लेकर मूल गंभारे में दूसरी निसीहि का उच्चारण करते हुए प्रवेश करें। यहाँ पर मन्दिर सम्बन्धी कार्यों का भी त्याग हो जाता है। • जयणापूर्वक प्रतिमाजी पर रहे हुए निर्माल्य पुष्प, अलंकार, मुकुट कुंडल आदि निकालें। • मोरपिंछी से जिनप्रतिमा एवं वेदी की प्रमार्जना करें। पबासन के प्रमार्जन हेतु पूंजणी एवं फर्श की प्रमार्जना हेतु कोमल बुहारी (झाडू) का प्रयोग करें। • शुद्ध जल में भिगाए हुए गीले वस्त्र से प्रतिमाजी पर रही हुई बासी केशर आदि को उतारें। तत्पश्चात विशेष शुद्धि के लिए आवश्यकता अनुसार खसकुंची (वालाकुंची) का प्रयोग अत्यंत कोमलता एवं जयणापूर्वक करें। • तदनन्तर जलपूजा हेतु समर्पण मुद्रा में पानी के कलश को धारण करें तथा मंत्रोच्चार, दोहे एवं घंटनाद पूर्वक परमात्मा का न्हवण करें। पंचामृत आदि से अभिषेक कर शुद्ध जल से प्रतिमाजी की शुद्धि करें।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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