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14. चउद्दसं बाहुकज्झयणं
जुत्तं अजुत्तजोगं ण पमाणमिति बाहुकेण अरहता इसिणा बुइतं।
युक्त भी अयुक्त से संबद्ध हो तो वह प्रमाणभूत नहीं है। ऐसा अर्हत् बाहुक ऋषि बोले
The valid when in juxtaposition with the invalid loses its claim to validity.
Bahuk, the enlightened spoke thus.
अप्पणिया खलु भो अप्पाणं समुक्कसिया ण भवति बद्धचिन्धे णरवती, अप्पणिया खलु भो य अप्पाणं समुक्कसिय भवति बद्धचिन्धे सेट्टी। एवं चेव अणुयोगे जाणह खलु भो समणा माहणा : गामे अदुवा रण्णे अदु वा गामे णो वि रणे।
अभिणिस्सए इमं लोगं, परलोगं पणिस्सए। ..
भो मुमुक्षु! राजकीय चिह्नों से सम्पन्न राजा के लिए अपने आपको उत्कृष्ट बताने की आवश्यकता नहीं होती। भो मुमुक्षु! बद्धचिह्न श्रेष्ठि के लिए अपने आपको पुनः पुनः उत्कर्षशील बनाने की आवश्यकता होती है। भो श्रमणो! भो माहणो! यह अनुयोग इस प्रकार समझना चाहिए। ग्राम में अथवा अरण्य में अथवा दोनों में रहते हुए इह लोक का सेवन करे और परलोक की उपासना करे।
A Prince endowed with paraphernalia need not announce his royalty. A duly decked millionaire hardly needs any overt effort to obtain recognition. Thou O Shramanas and thou Brahmins, please know that this observation applies to villages and forests both and it destroys the existence here and hereafter.
दुहओ वि लोके अपतिद्वितो। अकामए बाहुए मते ति अकामए चरए तवं अकामए कालगते णरकं पत्ते, अकामते पव्वइए, अकामते चरते तवं,
अकामए कालगते, सिद्धिं पत्ते अकामए।
वह दोनों ही लोक में अप्रतिष्ठित हो जाता है (क्योंकि दोनों ही लोक अशाश्वत हैं) ऐसा अकाम बाहुक का (मेरा) मत है। अकाम तप का आचरण करने वाला अकाम मरण से (पूर्व कर्मों के वशीभूत) नरक गति को प्राप्त करता
292 इसिभासियाई सुत्ताई