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गंभीरं सव्वतोभद्दं, सव्वभावविभावणं। धणा जिणाहितं मग्गं, सम्मं वेदेंति भावतो ।।33।।
33. गम्भीर, सर्वतोभद्र - पूर्णतः कल्याणकारी, समस्त भावों के प्रकाशक, जिनेन्द्र प्ररूपित मार्ग को जो सम्यक् प्रकार से श्रद्धा भावनापूर्वक पहचानते हैं अथवा आचरण करते हैं वे (आत्माएं) धन्य हैं।
33. Blessed are they who devoutly pattern their conduct in accordance with the path shown by Lord Jinendra, the profounder of all profound and pious modes.
एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दन्ते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि ।
नवमं महाकासवज्झयणं ।
इस प्रकार वह सिद्ध, बुद्ध, विरत, निष्पाप, जितेन्द्रिय, वीतराग एवं पूर्ण त्यागी बनता है और भविष्य में पुनः इस संसार में नहीं आता है।
ऐसा मैं (अर्हत् श्रेष्ठ महाकाश्यप ऋषि) कहता हूँ ।
This is the means, then, for the aspirant to attain purity, enlightenment, emancipation, piety, abstinece and nonattachment. Such a being is freed of the chain of reincarnations. Thus I Mahakashyap, the seer, do pronounces. महाकाश्यप नामक नौवां अध्ययन पूर्ण हुआ । 9 ।
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9. महाकाश्यप अध्ययन 279