________________
त्रिपिटक के आधार पर वज्जीयपुत्त (वात्सीयपुत्र) भी बुद्ध के लघुवयस्क समकालीन ही है—वे आनन्द के निकट थे । वज्जीपुत्रीय सम्प्रदाय भी बुद्ध के निर्वाण की प्रथम शताब्दी में ही अस्तित्व में आ गया था। अतः इनका बुद्ध का लघुवयस्क समकालीन होना सिद्ध है। अतएव ऐतिहासिक दृष्टि से भी ऋषिभाषित बुद्ध और महावीर के निर्वाण की प्रथम शताब्दी में ही निर्मित हो गया होगा। यह सम्भव है कि इसमें बाद में कुछ परिवर्तन हुआ हो । मेरी दृष्टि में इसके रचनाकाल की पूर्व सीमा ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी और अन्तिम सीमा ई.पू. 3 शती के बीच ही है । मुझे अन्तः और बाह्य साक्ष्यों में कोई भी ऐसा तत्त्व नहीं मिला, जो इसे इस कालावधि से परवर्ती सिद्ध करे। दार्शनिक विकास की दृष्टि से विचार करने पर भी हम इसमें जैन सिद्धान्तों का और न बौद्ध सिद्धान्तों का विकसित रूप नहीं पाते हैं। इसमें मात्र पंचास्तिकाय और अष्टविध कर्म का निर्देश है। यह भी सम्भव है कि ये अवधारणाएँ पाश्र्वापत्यों में प्रचलित रही हो और वहीं से महावीर की परम्परा में ग्रहण की गई हो। परीषह, कषाय आदि की अवधारणाएँ तो प्राचीन ही हैं। ऋषिभाषित के वात्सीयपुत्र, महाकाश्यप, सारिपुत्र आदि बौद्ध ऋषियों के उपदेश में भी केवल बौद्ध धर्म के प्राचीन सिद्धान्त सन्ततिवाद, क्षणिकवाद आदि ही मिलते हैं। अतः बौद्ध दृष्टि से भी यह पालित्रिपिटक से प्राचीन है ।
ऋषिभाषित की रचना — ऋषिभाषित की रचना के सम्बन्ध में प्रो. शुब्रिंग एवं अन्य विद्वानों का मत है कि यह मूलतः पार्श्व की परम्परा में निर्मित हुआ होगा, क्योंकि उस परम्परा का स्पष्ट प्रभाव प्रथम अध्याय में देखा जाता है, जहाँ ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को एक साथ मानकर उसे चातुर्याम की व्यवस्था के अनुरूप ढाला गया है 29 । पुनः पार्श्व का विस्तृत अध्याय भी उसी तथ्य को पुष्ट करता है। दूसरा इसे पार्श्व की परम्परा का मानने का एक आधार यह भी है कि पार्श्व की परम्परा अपेक्षाकृत अधिक उदार थी— उसकी अन्य परिव्राजक और श्रमण परम्पराओं से आचार-व्यवहार आदि में भी अधिक निकटता थी । पार्श्वपत्यों के महावीर के संघ में प्रवेश के साथ यह ग्रन्थ महावीर की परम्परा में आया और उनकी परम्परा में निर्मित दशाओं में प्रश्नव्याकरणदशा के एक भाग के रूप में सम्मिलित किया गया।
ऋषिभाषित का प्रश्नव्याकरण से पृथक्करण
अब यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि क्यों तो पहले उसे प्रश्नव्याकरणदशा में डाला गया और बाद में उसे उससे अलग कर दिया गया ? मेरी दृष्टि में पहले तो विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक उपदेशों का संकलन होने से 26 इसिभासियाई सुत्ताई
-