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________________ अनुवादकीय भूमिका जैनागमों के बहुमूल्य और विशाल भण्डार में एक सूत्र /प्रकीर्णक ग्रन्थ 'इसिभासियाई ं (ऋषि-भाषितानि) बहुत समादृत और प्राचीन सूत्र माना जाता है। इसमें 45 ऋषियों के अध्यात्म दर्शन, जिसे सही अर्थों में जीवन-दर्शन कहा जाना चाहिये, का सार - -संक्षेप, उपदेशात्मक अभिव्यक्तियाँ, देशना तथा मार्गदर्शन देने वाले प्राकृत सूत्र निबद्ध हैं । इनकी भाषा मिली-जुली प्राकृत है जो कहीं मागधी और अर्द्धमागधी प्रधान है और कहीं उस पर शौरसैनी और पैशाचि की छाया भी है। कहीं महाराष्ट्री का प्रभाव है। भाषाविज्ञों ने यह मत व्यक्त किया है कि इनकी भाषा को देखते हुए यह सूत्र बहुत प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी यह विशेषता तो स्वतः स्पष्ट है ही कि इन ऋषियों में जैन, अर्हत् और तत्त्वचिन्तक (जैसे पार्श्वनाथ, महावीर आदि) तो हैं ही, प्राचीन वैदिक परम्परा के ऋषि भी हैं (जैसे अंगिरा, याज्ञवल्क्य), पौराणिक परम्परा के ऋषि भी हैं (जैसे नारद, उद्दालक), पिंग और इसिगिरि जैसे ब्राह्मण परिव्राजक भी हैं तो सातिपुत्र जैसे बौद्ध भिक्षु भी। यह अपने आप में इस देश की प्राचीन चिन्तन परम्परा की उस विशेषता का प्रमाण है जिसमें सम्प्रदायविशेष से ऊपर उठकर भी दार्शनिक तत्त्व - चिन्तन हुआ करता था और प्रत्येक शाखा के मनीषी अन्य शाखाओं के तत्त्वचिन्तन को भी आदर देकर उसका संकलन करते थे। इस सूत्र के महत्त्व और विशेषताओं पर इस ग्रन्थ में अन्यत्र डॉ. सागरमल जैन की 'ऋषिभाषित : एक अध्ययन' शीर्षक प्रस्तावना के अन्तर्गत पर्याप्त सामग्री मिलेगी । प्राकृत भारती अकादमी के प्रमुख कार्यभारियों का, विशेषकर इसके कर्मठ सचिव श्री देवेन्द्रराज मेहता का ध्यान ऋषिभाषित सूत्रों की ओर गया; जिनकी उपर्युक्त विशेषता इसे अन्य ग्रन्थों से अलग-अलग स्थापित करती है। उन्होंने . अनुभव किया कि इन सूत्रों का हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद सहित यदि एक संस्करण प्रकाशित हो तो वह बहुत बड़ी आवश्यकता की पूर्ति कर सकेगा; क्योंकि अब तक इस प्रकार का कोई संस्करण इन सूत्रों का उपलब्ध नहीं था। यद्यपि इसका गुजराती एवं हिन्दी अनुवाद सर्वप्रथम 1963 में निकला था। अनुवाद किया था प्रसिद्ध वक्ता एवं विचारक श्री मनोहरमुनि शास्त्री ने। इस अनुवाद के साथ भाष्य की शैली में उन्होंने हिन्दी व्याख्या भी दी थी जो प्रो. इभासियाई सुताई 15
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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