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तंजा - उमा,
7. पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नता,
संखा इसिभासियाई, आयरियभासिताई, महावीरभासिताई, खोमपसिणाई, कोमलपसिणाई उद्यागपसिणाई, बाहुपसणाई | - ठाणंगसुत्ते, दसमं अज्झणं दसाणं (महावीर जैन विद्यालय संस्करण पृ. 311 )
8. चोत्तालीस अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुताभासिया पण्णत्ता ।
9. आहंसु महापुरिसा पुव्विं उदएण सिद्धिभावन्ना तत्थ मंदो अभुंजिया नमी विदेही, रामपुत्ते या बाहुए उदगं भोच्चा तहा नारायणे आसिते दविले चेव दीवायण पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य ।। 3 ।। एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इह सम्मता । भोच्चा बीओदगं सिद्धा इति मेयमणुस्सुआ ।। 4 ।।
10. सूत्रकृतांग 2/6/1-3, 7, 9 11. भगवती, शतक 15
12. उपासकदशांग अध्याय 6 एवं 7
13. (अ) सुननिपात 32 सभियसुत्त
(ब) दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्त
तत्ततवोधणा ।
विसीयति ।। 1 ।।
भुंजिआ। रिसी ।। 2 ।।
महारिसी ।
19 सुत्तनिपात 32, सभियसुत्त । 20. वही
14. ये ते समणब्राह्मणा संगिनो गणिनो गणाचरिया आता यसस्सिनो तित्थकरा साधु सम्मता बहुजनस्स, सेप्यथीदं-पूरणो कस्सपो, मक्खलि गोसालो, अजितो केसकम्बली, पकुधो कच्चायनो, संजयो बेलट्ठिपुत्ता, निग्गण्ठो नातपुत्तो । —सुत्तनिपात 32 – सभयसुत्त 15. (अ) पालि साहित्य का इतिहास (भरतसिंह उपाध्याय) पृ. 102-104
16. उभो नारद पबता । 17. असितो इस अद्दस दिवाविहारे ।
18. जिणेऽहमस्मि अबलो वीतवण्णे (इच्चायस्मा पिंगियो ) ।
- समवायांगसुत्त - 44
(ब) It is....the oldest of the poetic good of the Buddhist Scriptures. —The Suttanipata ( sister Vayira) introduction for P. 2 - सुत्तनिपात 32, सभियसुत्त 34, —सुत्तनिपात 32, नालक सुत्त 1
- सूत्रकृतांग 1/3/4/1-4
21. वही
22. थेरगाथा 36; डिक्सनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स।
—सुत्तनिपात 71 पिंगियमाणवपुच्छा
- वोल्यूम प्रथम, पेज 621, वाल्यूम द्वितीय पेज 15 ऋषिभाषित : एक अध्ययन 117