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ग्रन्थमाला परिचय
सोलापूर निवासी स्व० प्र० जीवराज गौतमचन्द दोशी इन्होंने उदासीन होकर अपनी न्यायोपार्जित सम्पत्तिका विनियोग विशेषतः धर्म और समाजकी उन्नति कार्यमें करें इस उद्देश्यसे सन् १९४१ के ग्रीष्मकालमें सिद्धक्षेत्र श्री गजपथके शीतल व पवित्र क्षेत्रपर विद्वानोंकी समाज एकत्रित कर जनसंस्कृति तथा प्राचीन जैन साहित्यके समस्त अंगोंका संरक्षण, उद्वार-प्रचार हेतु 'जैन संस्कृति संरक्षक संघ' की स्थापना की। उसके लिए एकमुस्त दान ६० ३०,००० की स्वीकृति दी। ब्रह्मचारीजीकी उदासीन वृत्ति बढ़ती गयी। सन् १९४४ में उन्होंने अपनो सम्पूर्ण सम्पत्ति लगभग दो लाख रुपये संघको अर्पण किये तथा संस्थाका ट्रस्ट बनाकर रजिस्ट्रेशन किया गया। इसी संपके अन्तर्गत 'जीवराज जैन ग्रन्थमाला' द्वारा प्राचीन प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी तथा मराठी पुस्तकोंका प्रकाशन होता है।
आजकल इस ग्रन्थमालासे हिन्दी विभाग में ३६ ग्रन्थ तथा मराठी विभाग में ५३ ग्रन्य प्रकाशित हो चुके हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ हिन्दी विभागका ३२वीं पुष्प है ।