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________________ ३२७ धर्मपरीक्षा-१९ निवसन्ति हृषीकाणि निवृत्तानि स्वगोचरात् । एकीभूयात्मना यस्मिन्नुपवासमिमं विदुः ॥८७ चतुविधाशनत्यागं विधाय विजितेन्द्रियैः। ध्यानस्वाध्यायतन्निष्ठेरास्यते सकलं विनम् ॥८८ कृत्यं भोगोपभोगानां परिमाणं विधानतः। भोगोपभोगसंख्यानं कुर्वता व्रतचितम् ॥८९ माल्यगन्धान्नताम्बूलभूषारामाम्बरादयः। सद्भिः परिमितीकृत्य सेव्यन्ते व्रतकाक्षिभिः ॥९० आहारपानौषधसंविभागं गहागतानां विधिना करोतु । भक्त्यातिथीनां विजितेन्द्रियाणां व्रतं वधानो ऽतिथिसंविभागम् ॥९१ चतुविधं प्रासुकमन्नवानं संघाय भक्तेन चविधाय। दुरन्तसंसारनिरासनार्थ सदा प्रदेयं विनयं विधाय ॥९२ इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयसे विमुख होकर आत्माके साथ एकताको प्राप्त होती हुई जिसमें निवास किया करती हैं उसका नाम उपवास है, यह उपवास शब्दका निरुक्त्यर्थ कहा गया है ॥८७॥ उपवास करनेवाले श्रावक अपनी इन्द्रियोंको वशमें करके अन्न, पान, स्वाद्य और लेह्य इन चारों आहारोंका परित्याग करते हुए दिनभर ध्यान और स्वाध्यायमें तल्लीन रहा करते हैं ॥८॥ श्रावकको जनोंसे पूजित भोगोपभोगपरिमाणवतको करते हुए एक बार भोगनेरूप भोग और अनेक बार भोगनेरूप उपभोग इन दोनों ही प्रकारके पदार्थोंका 'मैं अमुक भोगरूप वस्तुओंको इतने प्रमाणमें तथा अमुक उपभोगरूप वस्तुओंको इतने प्रमाणमें रखूगा, इससे अधिक नहीं रखूगा' इस प्रकारका विधिपूर्वक प्रमाण कर लेना चाहिए ॥८९॥ जो सत्पुरुष व्रतके अभिलाषी हैं वे माला, गन्ध (सुगन्धित द्रव्य), अन्न, ताम्बूल (पान), आभूषण, स्त्री और वस्त्र आदि पदार्थों के प्रमाणको स्वीकार करके ही उनका उपभोग किया करते हैं ॥९॥ अतिथिसंविभाग व्रतके धारक श्रावकको अपनी इन्द्रियोंको जीत लेनेवाले अतिथिसाधु जनोंके-घरपर आनेपर उन्हें भक्तिके साथ विधिपूर्वक आहार-पान और औषधका दान देना चाहिए ॥२१॥ मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका; इस चार प्रकारके संघमें भक्ति रखनेवाले श्रावकको उसके लिए विनयके साथ चार प्रकारके प्रासुक आहारका खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेयका-निरन्तर दान करना चाहिए । इससे अनन्त संसारका विनाश होता है ॥१२॥ ८७) क निविशन्ति । ८९) अ क ड इ°संख्यानाम् । ९२) क इ विनाशनार्थ; द इ विनयं वहद्भिः ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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