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धर्मपरीक्षा - १८
अर्ककीतिरभूत् पुत्रो भरतस्य रथाङ्गिनः । सोमो बाहुबलेस्ताभ्यां वंशौ सोमार्कसंज्ञकौ ॥६७
रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौङ्गलायनः । शिष्य : श्री पार्श्वनाथस्य विवधे बुद्धदर्शनम् ॥६८ शुद्धोदनसुतं बुद्धं परमात्मानमब्रवीत् । प्राणिनः कुर्वते कि न कोपवैरिपराजिताः ॥६९ षण्मासानवसद् विष्णोबलभद्रः कलेवरम् । यतस्ततो भुवि ख्यातं कङ्कालमभवद् व्रतम् ॥७० कियन्तस्तव कथ्यन्ते मिथ्यादर्शनवर्तिभिः । नीचैः पाखण्डभेदा ये विहिता गणनातिगाः ॥७१
पाखण्डाः समये तुर्ये बीजरूपेण ये स्थिताः । प्ररुह्य विस्तरं प्राप्ताः कलिकालवनाविमे ॥७२
६९) १. अब्रुवन् ।
७२) १. पञ्चमसमयभुवि ।
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चक्रवर्ती भरतके अर्ककीर्ति नामका और बाहुबलीके सोम नामका पुत्र हुआ था । इन दोनोंके निमित्तसे सोम और अर्क (सूर्य) नामके दो अन्य वंश भी पृथिवीपर प्रसिद्ध हुए ||६७||
भगवान् पार्श्वनाथका जो मौङ्गिलायन नामका तपस्वी शिष्य था उसने महावीर स्वामीके ऊपर क्रोधित होकर बुद्धदर्शनकी - बौद्ध मतकी – रचना की ||६८||
उसने शुद्धोदन राजाके पुत्र बुद्धको परमात्मा घोषित किया । ठीक है - क्रोधरूप शत्रुके वशीभूत हुए प्राणी क्या नहीं करते हैं - वे सब कुछ अकार्य कर सकते हैं ||६९॥
बलभद्रने चूँकि कृष्णके निर्जीव शरीरको छह मास तक धारण किया था इसीलिए पृथ्वीपर 'कंकाल' व्रत प्रसिद्ध हो गया || ७० ॥
हे मित्र ! मिथ्यादर्शनके वशीभूत होकर मनुष्योंने जिन असंख्यात पाखण्ड भेदोंकीविविध प्रकारके अयथार्थ मतोंकी - रचना की है उनमें से भला कितने मतोंकी प्ररूपणा तेरे लिए की जा सकती है ? असंख्यात होनेसे उन सबकी प्ररूपणा नहीं की जा सकती है ॥ ७१ ॥
ये जो पाखण्ड मत चतुर्थ कालमें बीजके स्वरूपमें स्थित थे वे अब इस कलिकालस्वरूप पंचम कालमें अंकुरित होकर विस्तारको प्राप्त हुए हैं ॥ ७२ ॥
६७) अरभून्मिश्रो; अ ब क इ संज्ञिकौ । ६८) अ इ मौण्डिलायनः । ७०) भ नावहेद्विष्णो ं । ७१) अ इ नरैः for नीचैः ।
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६९) अब 'त्मानमकल्पयन् ।