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________________ । धर्मपरीक्षा-१७ २८१ मलो विशोध्यते बाह्यो जलेनेति निगद्यताम् । पापं निहन्यते तेन कस्येवं हृदि वर्तते ॥३६ मिथ्यात्वासंयमाज्ञानः कल्मषं प्राणिनाजितम् । सम्यक्त्वसंयमज्ञाने«न्यते नान्यथा स्फुटम् ॥३७ कषायैरजितं पापं सलिलेन निवार्यते । एतज्जडात्मनो ब्रूते नान्यो मीमांसको ध्रुवम् ॥३८ यदि शोषयितुं शक्तं शरीरमपि नो जलम् । अन्तःस्थितं मनो दुष्टं कथं तेने विशोध्यते ॥३९ गर्भादिमृत्युपर्यन्तं चतुर्भूतभवो भवी'। नापरो विद्यते येषां तैरास्मा वञ्च्यते ध्रुवम् ॥४० ३६) १. जलेन। ३८) १. मानविचारणे। ३९) १. जलेन। ४०) १. जीवः । २. मते। करनेपर भी वह कभी पवित्र नहीं हो सकता है। उसी प्रकार स्वभावतः मलसे परिपूर्ण शरीर बाह्यमें जलसे स्नान करने पर वह कभी पवित्र नहीं हो सकता है ॥३५॥ जलसे बाहरी मल शुद्ध होता है-वह शरीरके ऊपरसे पृथक् हो जाता है, यह तो कहा जा सकता है; परन्तु उसके द्वारा पापरूप मल नष्ट किया जाता है, यह विचार भला किसके हृदयमें उदित हो सकता है-इस प्रकारका विचार कोई भी बुद्धिमान नहीं कर सकता है ॥३६॥ पापी प्राणी मिथ्यात्व, असंयम और अज्ञानताके द्वारा जिस पापको संचित करता है वह सम्यक्त्व, संयम और विवेक ज्ञानके द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है। उसके नष्ट करनेका और दूसरा कोई उपाय नहीं है। यह स्पष्ट है ॥३७॥ क्रोधादि कषायोंके द्वारा उपार्जित पाप जलसे धोया जाता है, इस बातको जडात्मासे अन्य-विवेकहीन मनुष्यको छोड़कर और दूसरा-कोई भी विचारशील मनुष्य नहीं कह सकता है, यह निश्चित है ॥३८॥ जब कि वह जल पूर्णतया शरीरको ही शुद्ध नहीं कर सकता है तब भला उसके द्वारा उस शरीरके भीतर अवस्थित दोषपूर्ण मन कैसे निर्मल किया जा सकता है ? कभी नहीं ॥३९॥ जो पृथिवी आदि चार भूतोंसे उत्पन्न होकर गर्भसे लेकर मरण पर्यन्त ही रहता है उसीका नाम प्राणी या जीव है, उसको छोड़कर गर्भसे पूर्व व मरणके पश्चात् भी रहनेवाला कोई जीव नामका पदार्थ नहीं है। इस प्रकार जो चार्वाक मतानुयायी कहते हैं वे निश्चयसे अपने आपको ही धोखा देते हैं ॥४०॥ ३६) अ विशुद्धयते; बनिहन्यतेनेन। ३७) अ पापिनाजितम् । ३८) ब क नान्ये for नान्यो; ड इदं for ध्रुवम् । ३९) अ विशुध्यति । ४०) अ पर्यन्तश्चतु।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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