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"धर्मपरीक्षा-१५
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आवयो रक्षतोस्तत्र भिक्षुवासांसि यत्नतः । आजग्मतुः शृगालौ द्वौ भीषणौ स्थूलविग्रहौ ॥७७ प्रस्तावावां ततो यावदारूढौ स्तूपमूजितम्। । तावदुत्पतितौ तं तौ गृहीत्वा विगतौ दिवि' ॥७८ श्रुत्वावयोः स्वनं यावन्निर्गच्छन्ति तपस्विनः। योजनानि गतौ तावद् द्वादशैतौ महास्यवो' ॥७९ मुक्त्वा स्तूपैमिमौ भूम्यामावा खादितुमुद्यतौ। गृद्धौ सौनश्विकांश्चित्रानद्राष्टां शस्त्रधारिणः ॥८० तावस्मद्धक्षणं त्यक्त्वा तेभ्यो भीतौ पलायितो। करोति भोजनारम्भं न कोऽपि प्राणसंशये ॥८१ ततः पापधिकैः सार्धमागत्य विषयं शिवम् ।
आवाभ्यां मन्त्रितं द्वाभ्यां निश्चलीकृत्य मानसम् ॥८२ ७८) १. स्तूपम् । २. आकाशे । ७९) १. शीघ्रगामिनौ। ८०) १. क क्षुद्रपर्वतम् । २. शृगालौ। ८१) १. तौ। ८२) १. देशम् । २. इति मन्त्रितम् ।
तदनुसार हम दोनों वहाँ उन भिक्षुओंके वस्त्रोंकी रक्षा प्रयत्नपूर्वक कर रहे थे। इतने में दो मोटे ताजे भयानक गीदड़ [गीध] वहाँ आ पहुँचे ॥७७॥
तब हम दोनों उनसे भयभीत होकर एक बड़े टीले के ऊपर चढ़े ही थे कि इतने में वे दोनों उस टीलेको उठाकर ऊपर उड़े और आकाशमें चले गये ।।७।। ___ उस समय हमारे आक्रन्दनको सुनकर जब तक भिक्षु बाहर निकले तबतक वे दोनों
बड़े वेगसे बारह योजन तक
पश्चात् वे दोनों गीध उस टीलेको पृथिवीपर छोड़कर जैसे ही हम दोनोंको खानेके लिए उद्यत हुए वैसे ही उन्हें शाखोंके धारक अनेक प्रकारके शिकारी कुत्तोंके साथ वहाँ आते हुए दिखाई दिये ॥८॥
तब उनसे भयभीत होकर उन दोनोंने हमें खानेसे छोड़ दिया और स्वयं भाग गये । ठीक है-प्राण जानेकी शंका होनेपर कोई भी भोजनको प्रारम्भ नहीं करता है किन्तु उसे छोड़कर अन्यत्र भाग जानेका ही प्रयत्न करता है ।।८१॥
तत्पश्चात् हम दोनोंने शिकारियोंके साथ शिव देशमें आकर मनको स्थिर करते हुए इस प्रकार विचार किया हम दोनों दिङ्मूढ होकर इस दूसरेके देशको प्राप्त हुए हैं व अपने ७७) ड इ रक्षितोस्तत्र । ७८) भ वेगतो दिवि । ७९) अ ब क इ महास्पदो। ८०) ब क इ इ गृध्रौ for गृद्धौ । ८१) इ प्राणसंकटे। .