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________________ धर्मपरीक्षा-१५ २५१ मिथ्याज्ञानतमोव्याप्त लोकेऽस्मिन्निविचारके। एकः शतसहस्राणां मध्ये यदि विचारकः ॥६५ विरुद्धमपि मे शास्त्रं यास्यतीदं प्रसिद्धताम् । इति ध्यात्वा तुतोषासौ दृष्ट्वा लोकविमूढताम् ॥६६ विज्ञायेत्थं पुराणानि लौकिकानि मनीषिभिः । न कार्याणि प्रमाणानि वचनानीव वैरिणाम् ॥६७ दर्शयामि पुराणं ते मित्रान्यदपि लौकिकम् । उक्त्वेति परिजग्राह स रक्तपटरूपताम् ॥६८ द्वारेण पञ्चमेनासौ प्रविश्य नगरं ततः। आरूढः काञ्चने पीठे भेरीमाहत्य पाणिना ॥६९ समेत्य भूसुररक्तो दृश्यसे त्वं विचक्षणः । किं करोषि समं वावमस्माभिवेत्सि किचन ॥७० ६७) १. विद्वद्भिः । ६८) १. बौद्धरूपम्। ७०) १. ब्राह्मणैः। देखकर यथार्थताका विचार नहीं किया करते हैं वे अपने अभीष्ट कायको इस प्रकारसे नष्ट करते हैं जिस प्रकार इन लोगोंने मेरे ताम्रपात्रको नष्ट कर दिया-इतने असंख्य बालुकाके ढेरोंमें उसका खोजना असम्भव कर दिया ॥६३-६४॥ अज्ञानरूप अन्धकारसे व्याप्त इस अविवेकी लोकके भीतर लाखोंके बीचमें एक आध मनुष्य ही विचारशील उपलब्ध हो सकता है। ऐसी अवस्थामें विपरीत भी मेरा वह शास्त्रमहाभारत-प्रसिद्धिको प्राप्त हो सकता है। ऐसा विचार करके व लोगोंकी मूर्खताको देखकर अन्तमें व्यासको अतिशय सन्तोष हुआ ॥६५-६६॥ । इस प्रकार लोकमें प्रसिद्ध उन पुराणोंको शत्रुओंके वचनोंके समान जानकर उन्हें विद्वानोंको प्रमाण नहीं करना चाहिये-उन्हें विश्वसनीय नहीं समझना चाहिये ॥६॥ ___आगे मनोवेग कहता है कि हे मित्र ! अब मैं तुम्हें और भी लोकप्रसिद्ध पुराणकोपुराणप्ररूपित वृत्तको-दिखलाता हूँ, इस प्रकार कहकर उसने रक्त वस्त्रके धारक परिव्राजकके वेषको ग्रहण किया ॥६॥ तत्पश्चात् वह पाँचवें द्वारसे प्रविष्ट होकर नगरके भीतर गया और हाथसे भेरीको ताड़ित करता हुआ सुवर्णमय सिंहासन के ऊपर बैठ गया ।।६९॥ उस भेरीके शब्दको सुनकर ब्राह्मण आये और उससे बोले कि तुम विद्वान् दिखते हो, तुम क्या कुछ जानते हो व हम लोगोंके साथ शास्त्रार्थ करोगे? ॥७॥ ६५) ड व्याप्तलोके; बनिर्विचारकः। ६७) अ विज्ञायित्वम; अ वचानीव हि, ड वचनान्येव । ६८) अइ पुराणान्ते; इ न्यदपि कौतुकम्....प्रतिजग्राह । ६९) भ नगरं गतः...कानके पीठे।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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