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धर्मपरीक्षा-१५
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परः पाराशरो राजा तापसो ऽसौ पुनः परः । एकतां कुर्वते लोकास्तयो मविमोहिताः ॥५१ दुर्योधनावयः पुत्रा गान्धार्या धृतराष्ट्रजाः। कुन्तीमद्रयोः सुताः पञ्च पाण्डवाः प्रथिता' भुवि ॥५२ गान्धारीतनयाः सर्वे कर्णेन सहिता नुपम् । जरासंध निषेवन्ते पाण्डवाः केशवं पुनः ॥५३ जरासंधं रणे हत्वा वासुदेवो महाबलः । बभूव घरणीपृष्ठे समस्ते घरणीपतिः ॥५४ कुन्तीशरीरजाः कृत्वा तपो जग्मुः शिवास्पवम् । माद्रीशरीरजौ भव्यौ सर्वार्थसिद्धिमीयतुः ॥१५ दुर्योधनादयः सर्वे निषेव्य जिनशासनम् । आत्मकर्मानुसारेण प्रययुस्त्रिदिवास्पदम् ॥५६ ईदृशो ऽयं पुराणार्थो व्यासेन परथाकथि।
मिथ्यात्वाकुलचित्तानां तथ्या' भाषा कुतस्तनी ॥५७ ५२) १. विख्याताः । ५७) १. सत्या ।
इसी प्रकार पूर्व व्यासका पिता वह पारासर तापस और उत्तर व्यासका पिता पारासर राजा ये दोनों भी भिन्न हैं। लोग दोनोंका एक ही नाम होनेसे अज्ञानतावश उन्हें अभिन्न मानते हैं ॥५१॥
धृतराष्ट्र के संयोगसे उत्पन्न हुए दुर्योधन आदि पुत्र गान्धारीके तथा पृथ्वीपर प्रसिद्ध पाँच पाण्डव (पाण्डुपुत्र) कुन्ती व मद्रीके पुत्र थे ॥५२॥ ....
- वे सब गान्धारीके पुत्र कर्ण के साथ राजा जरासन्धकी सेवा किया करते थे तथा पाँचों पाण्डव कृष्णकी सेवा करते थे ॥५३॥
वसुदेवका पुत्र अतिशय प्रतापशाली कृष्ण युद्ध में जरासन्धको मारकर समस्त पृथिवीका-तीन खण्ड स्वरूप दक्षिणार्ध भरत क्षेत्रका-स्वामी हुआ ॥५४॥
___ कुन्तीसे उत्पन्न तीन पाण्डव-युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन-तपश्चरण करके मुक्तिको तथा मद्रीके भव्य पुत्र-नकुल व सहदेव-सर्वार्थसिद्धिको प्राप्त हुए ॥५५।।
__ शेष दुर्योधन आदि सब जैन धर्मका आराधन करके अपने-अपने कर्मके अनुसार स्वर्गादिको प्राप्त हुए हैं ॥५६॥
इस प्रकार यह पुराणका यथार्थ वृत्त है, जिसका वर्णन व्यासने विपरीत रूपसे किया है। सो ठीक भी है-जिनका अन्तःकरण मिथ्यात्वसे व्याप्त रहता है, वे यथार्थ कथन कहाँसे कर सकते हैं ? नहीं कर सकते ॥५॥ ५१) व पुरः परासरो; इ जातस्तापसो....कुर्वन्ते । ५३) अ क ड इ जरासिन्धु; व निषेवन्तः । ५४) क धरणीतले, ड इ धरणीपीठे। ५५) अ क मद्री । ५६) अ ब इस्त्रिदिवादिकम् । ५७) ब यो for अयम्; क तथा भाषा।
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