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________________ २२१ धर्मपरीक्षा-१३ यो विभावसुकरालितं गृहं नात्मनः शमयते नरो ऽलसः । सो ऽन्यगेहशमने प्रवर्तते कः करोति शुभधीरिदं हृदि ।।९५ द्वेषरागमदमोहमोहिता ये विदन्ति सुखदानि नात्मनः । ते परस्य कथयन्ति शाश्वत्तं मुक्तिमार्गमपबुद्धयः कथम् ॥९६ कामभोगवशतिभिः खलरन्यतः स्थितमिदं जगत्त्रयम। अन्यथा कथितमस्तचेतनैः श्वभ्रवासमनवेक्ष्य दुःखदम् ॥९७ कापथैर्भवसमुद्रपातिभिश्छादिते जगति मुक्तिवत्मनि । यः करोति न विचारमस्तधीः स प्रयाति शिवमन्दिरं कथम ॥९८ ९५) १. आलसी । २. अपि तु न प्रवर्तते। ९६) १. शास्त्राणि मार्गम् । ९७) १. लोकैः। ९८) १. मिथ्यादृष्टिभिः। दूसरेके लिए सुख-दुखके कारण हो सकते हैं-उसे सुख अथवा दुख दे सकते हैं, इस बातको विचारशील विद्वान् कैसे मान सकते हैं-इसे कोई भी बुद्धिमान स्वीकार नहीं कर सकता है ॥१४॥ ___ उदाहरणस्वरूप जो आलसी मनुष्य अग्निसे जलते हुए अपने ही घरको शान्त नहीं कर सकता है वह दूसरेके जलते हुए घरके शान्त करनेमें-उसकी आगके बुझानेमें-प्रवृत्त होता है, इस बातको कौन निर्मल बुद्धिवाला मनुष्य हृदयस्थ कर सकता है ? अर्थात् इसे कोई भी बुद्धिमान स्वीकार नहीं कर सकता है ॥१५॥ द्वेष, राग, मद और मोहसे मूढ़ताको प्राप्त हुए जो प्राणी अपने ही सुखप्रद कारणोंको नहीं जानते हैं वे दुर्बुद्धि जन दूसरेके लिए शाश्वतिक मुक्तिके मार्गका-समीचीन धर्मकाउपदेश कैसे कर सकते हैं ? नहीं कर सकते हैं ॥१६॥ जिनकी चेतना-विचारशक्ति-नष्ट हो चुकी है उन दुष्ट जनोंने काम-भोगोंके वशीभूत होकर दुखदायक नरकवासको-नारक पर्यायके दुखको न देखते हुए अन्य स्वरूपसे स्थित इन तीनों लोगोंके स्वरूपका अन्य प्रकारसे–विपरीत स्वरूपसे-उपदेश किया है ।।९७|| लोकमें संसाररूप समुद्रमें गिरानेवाले कुमार्गों-मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र-से मोक्षमार्गके व्याप्त होनेपर जो दुर्बुद्धि प्राणी उसका-सन्मार्ग और कुमार्गका-विचार नहीं करता है वह मोक्षरूप भवनको कैसे जा सकता है ? नहीं जा सकता है ॥९८॥ ९५) अ शुभधीरयम्। ९६) अ वदन्ति । ९७) अ क ड खलैरन्यथा; ब इ दुःसहम् । ९८) व मूर्तिवम॑नि ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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