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________________ १६६ अमित गतिविरचिता नात्वं यदि मूर्खस्य हेमपीठाधिरोहणे । उत्तिष्ठामि तदा विप्रा इत्युक्त्वावततार सः ॥७३ विप्रैरुक्तं किमायातस्त्वमत्रेति ततो ऽवदत् । मार्जारविक्रयं कर्तुमायातो ऽहं वनेचरः ॥७४ ओतोः किमस्य माहात्म्यं किं मूल्यं विद्यते वद । इत्यसौ ब्राह्मणैरुक्तो निजगाद वनेचरः ॥७५ अस्य गन्धेन नश्यन्ति देशे द्वादशयोजने । आखवो' निखिलाः सद्यो गरुडस्येव पन्नगाः ॥७६ मूल्यं पलानि पञ्चाशद् हेमस्यास्ये महौजसः । तदायं गृह्यतां विप्रा यदि वो ऽस्ति प्रयोजनम् ॥७७ मिलित्वा ब्राह्मणाः सर्वे वदन्ति स्म परस्परम् । बिडालो गृह्यतामेष मूषकक्षपणक्षमः ॥७८ ७३) १. न योग्यत्वम् । ७५) १. मार्जारस्य; क बिडालस्य । ७६) १. मूषकाः । ७७) १. सुवर्णस्य । २. तेजस्विनः । विप्रो ! यदि मूर्ख की योग्यता सुवर्णमय सिंहासनके ऊपर बैठनेकी नहीं है तो मैं इसके ऊपरसे उठ जाता हूँ, यह कहता हुआ वह उस सिंहासनके ऊपरसे नीचे उतर गया ॥ ७३ ॥ तत्पश्चात् उन ब्राह्मणोंने उससे पूछा कि तुम यहाँ क्यों आये हो। इसके उत्तर में वह बोला कि मैं वनमें विचरण करनेवाला भील हूँ और इस बिल्लीको बेचने के लिए यहाँ आया हूँ ॥७४॥ इसपर ब्राह्मणोंने पूछा कि इस बिलाव में क्या विशेषता है और उसका मूल्य क्या है, यह हमें बतलाओ । उत्तर में मनोवेग बोला कि इसके गन्धसे बारह योजन मात्र दूरवर्ती देश के सब चूहे इस प्रकार से शीघ्र भाग जाते हैं जिस प्रकार कि गरुड़के गन्धसे सर्प शीघ्र भाग जाते हैं ।।७५-७६।। इस अतिशय तेजस्वी बिलाव का मूल्य सुवर्णके पचास पल ( लगभग ४ तोला ) है । यदि आप लोगोंका इससे प्रयोजन सिद्ध होता है तो इसे ले लीजिए ||१७|| इसपर वे सब ब्राह्मण मिलकर आपस में बोले कि यह बिलाव चूहोंके नष्ट करने में समर्थ है, अतः इसे ले लेना चाहिए || ७८ || ७४) अ ब॰रुक्तः; इ ंमागतो ऽहं । ७५) अ इ उत्तोः ; अ निजगाद नभश्चरः । ७६) ड योजनैः । ७७) ड हेममय हो, इम्नश्चास्य ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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