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________________ धर्मपरीक्षा-८ ततो ऽमुनीवाचि भवत्सु यो जडो विनिन्दितो मूर्खतमो ऽस्ति तस्य सा। ततः स्म सर्वे ऽहमहं वदन्त्यमी पराभवः क्वापि न सह्यते जनैः ॥१३ निशम्य तेषां कदनं दुरुत्तरं जगाद साधुः समुपेत्य पत्तनम् । विवेचयध्वं बुधलोकवाक्यतो जडा जडत्वं कलिमत्र कार्षु मा ॥९४ श्रुत्वा साधोरमितगतयो वाचमेनां जडास्ते जग्मुः सर्वे झटिति नगरं राटिमत्यस्य तुष्टाः। तिर्यञ्चो ऽप्यामुदितहृदयाः कुर्वते साधुवाक्यं संज्ञावन्तो भुवनमहितं मानवाः किं न कुयुः ॥९५ इति धर्मपरीक्षायाममितगतिकृतायामष्टमः परिच्छेदः ।।८।। ९३) १. मुनिना । २. धर्मवृद्धिः । ३. तिरस्कारः। ९४) १. क तेषां मूर्खाणाम् । २. क परस्परयुद्धम् । ३. क दुर्निवारम् । ४. गत्वा। ५. निर्णय कुरुध्वम् । ६. क मा कुरुत।। ९५) १. क शीघ्रम् । २. मुक्त्वा ; क त्यक्त्वा । - इसपर मुनिराज बोले कि आप लोंगोंमें जो पूर्ण रूपसे अतिशय मूर्ख है उसके लिए वह आशीर्वाद दिया गया है। यह सुनकर वे सब बोले कि मैं सबसे अधिक मूर्ख हूँ, मैं सबसे अधिक मूर्ख हूँ। ठीक है-प्राणी कहींपर भी तिरस्कारको नहीं सह सकते हैं ॥९३॥ उनके इस दुष्ट उत्तररूप वचनको सुनकर मुनि बोले कि हे मूर्यो ! तुम लोग नगरमें जाकर पण्डित जनोंके वचनों द्वारा अपनी मूर्खताका निर्णय करा लो, यहाँ झगड़ा न करो ॥१४॥ ___साधुके इस वचनको सुनकर वे सब मूर्ख सन्तोषपूर्वक कलहका परित्याग करके अपरिमित गमन करते हुए शीघ्रतासे नगरकी ओर चल दिये। ठीक है, पशु भी जब हृदय में हर्षित होकर साधुके वचनको पालन करते हैं-उसके कथनानुसार कार्य किया करते हैंतब क्या बुद्धिमान मनुष्य विश्वसे पूजित उस मुनिवाक्यका पालन नहीं करेंगे ? अवश्य करंगे ॥१५॥ . इस प्रकार अमितगतिविरचित धर्मपरीक्षामें आठवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥८॥ ९३) व दह्यते for सह्यते । ९४) अ वचनं दुरस्तरं। ९५) अ झगिति; म मुदितहृदितः, ड °पि मुदितं; इ प्रज्ञावन्तो; अ भवन । १८
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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