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________________ १२७ धर्मपरीक्षा-८ हालिको भणितो राज्ञा कि किमुप्तं त्वयेदृशे। तेनोक्तं कोद्रवा देव सम्यक्कृष्टा महाफलाः ॥३४ विलोक्य दुर्मति तस्य भूभुजा भणितो हलो। बग्धानामत्र वृक्षाणां कि रे किंचन विद्यते ॥३५ हस्तमात्रं ततस्तेन खण्डमानीय दर्शितम् । दग्धशेषतरोरेक राज्ञा दृष्ट्वा स भाषितः ॥३६ विक्रीणीष्वेदम?' त्वं नीत्वा भद्र लघु वज। तेनोक्तं देव किं मूल्यं काष्ठस्यास्य भविष्यति ॥३७ हसित्वा भूभुजाभाषि हालिको बुद्धिदुर्विषः । तदेव भद्र गृह्णीयाधत्ते दास्यति वाणिजः ॥३८ हटे तेन ततो नीतं काष्ठखण्डं विलोक्य तम् । दोनारपञ्चकं मूल्यं तस्य प्रादत्त वाणिजः ॥३९ हालिको ऽसौ ततो दध्यो' विषादानलतापितः। अज्ञात्वा कुर्वतः कार्य तापः कस्य न जायते ॥४० ३७) १. हट्टे । २. क शीघ्रम् । ४०) १. चिन्तितवान् । खेतकी उस दुरवस्थाको देखकर राजाने उस हलवाहकसे पूछा कि तुमने इस प्रकारके खेतमें क्या बोया है। इसपर उसने उत्तर दिया कि हे राजन् । इसको भली-भाँति जोतकर मैंने उसमें महान फलको देनेवाले कोदों बोये हैं ॥३४॥ तब उसकी दुर्बुद्धिको देखकर राजाने हलवाहकसे कहा कि हे कृषक ! यहाँ जलाये गये उन वृक्षोंका क्या कुछ अवशेष है ॥३५॥ इसपर उसने जलनेसे बचे हुए अगुरु वृक्षके एक हाथ प्रमाण टुकड़ेको लाकर राजाको दिखलाया। उसे देखकर राजाने उससे कहा कि हे भद्र ! तुम इसे लेकर शीघ्र जाओ और बाजारमें बेच डालो। यह सुनकर कृषकने कहा कि हे देव ! इस लकड़ीका क्या मूल्य होगा ॥३६-३७॥ . इसके उत्तरमें राजाने हँसकर उस बुद्धिहीनसे कहा कि दूकानदार इसका जो भी मूल्य तुम्हें देगा उसे ले लेना ॥३८॥ तदनुसार वह उस लकड़ीके टुकड़ेको बाजारमें ले गया। उसे देखकर दूकानदारने उसे उसका मूल्य पाँच दीनार दिया ॥३९।।। तत्पश्चात् वह हलवाहक विषादरूप अग्निसे सन्तप्त होकर इस प्रकार विचार करने लगा। ठीक है, जो बिना जाने-पूछे कार्यको करता है उसे सन्ताप होता ही है ॥४०॥ ३४) ब किमत्रोप्तम् । ३६) अ शेष, ब दग्धाशेष । ३७) क°मद्य for °मट्टे । ३८) अ°दुर्वचाः for दुर्विधः । ३९) ब तत् for तम् । ४०) अ तापम् ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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