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________________ १२४ अमितगतिविरचिता ग्रामेभ्यो जायते द्रव्यं द्रव्यतो भृत्यसंपदः । भृत्यनिषेव्यते राजा द्रव्यतो नोत्तमं परम् ॥१५ कुलीनः पण्डितो मान्यः शूरो न्यायविशारदः । जायते द्रव्यतो मयों विदग्धो धार्मिकः प्रियः॥१६ योगिनो वाग्मिनो' दक्षा वृद्धाः शास्त्रविशारदाः । सर्वे द्रव्याधिकं भक्त्या सेवन्ते चाटुकारिणः ॥१७ विशीर्णाघ्रिकरघ्राणं कुष्ठिनं द्रविणेश्वरम् । आलिङ्ग्य शेरते रामा नवयौवनभूषिताः ॥१८ सर्वे कर्मकरास्तस्य सर्वे तस्य प्रियंकराः। सर्वे वशंवदास्तस्य द्रव्यं यस्यास्ति मन्दिरे ॥१९ बालिशं शंसति' प्राज्ञः शूरो भीरु निषेवते। पापिनं धार्मिकः स्तौति संपदा सदनीकृतम् ॥२० चक्रिणः केशवा रामाः सर्वे ग्रामप्रसादतः। परासाधारणधीका गौरवं प्रतिपेदिरे ॥२१ १५) १. गजादयः। १७) १. क पण्डिताः। २०) १. सदसि। २१) १. प्राप्नुवन्ति । होता है, धनके निमित्तसे सेवकरूप सम्पत्ति होती है, और सेवकोंके द्वारा राजा होकर सेवित होता है। ठीक है, धनसे उत्कृष्ट और दुसरा कुछ भी नहीं है-लोकमें सर्वोत्कृष्ट धन ही है ॥१४-१५॥ मनुष्य धनके आश्रयसे कुलीन, विद्वान्, आदरका पात्र, पराक्रमी, न्यायनिपुण, चतुर, धर्मात्मा और सबका स्नेहभाजन होता है ।।१६।। ___ योगी, वचनपटु, चतुर, वृद्ध और शास्त्रके रहस्य के ज्ञाता; ये सब ही जन खुशामद करते हुए धनिककी भक्तिपूर्वक सेवा किया करते हैं ॥१७॥ लक्ष्मीवान पुरुषके पाँव, हाथ और नासिका यदि सड़-गल भी रही हों तो भी नवीन यौवनसे सुशोभित स्त्रियाँ उसका आलिंगन करके सोती हैं ॥१८॥ जिसके घरमें सम्पत्ति रहती है उसके सब ही जन आज्ञाकारी, सब ही उसके हितकर और सब ही उसकी अधीनताके कहनेवाले—उसके वशीभूत-होते हैं ॥१९॥ जिसको सम्पत्तिने अपना घर बना लिया है जो सम्पत्तिका स्वामी है-वह यदि मूर्ख भी हो तो उसकी विद्वान् प्रशंसा करता है, वह यदि कायर हो तो भी उसकी शूर-वीर सेवा किया करता है, वह पापी भी हो तो भी धर्मात्मा उसकी स्तुति करता है ॥२०॥ ___ चक्रवर्ती, नारायण (अर्धचक्री) और बलभद्र ये सब ग्रामोंके प्रसादसे-ग्राम-नगरादिकोंके स्वामी होनेसे ही अनुपम लक्ष्मीके स्वामी होकर महिमाको प्राप्त हुए हैं ॥२१॥ १५) अ भृत्यनिवेदितो। १७) अ भव्या for शास्त्र; ब द्रव्याधिपम् । २०) क शंसदि । ब संपदाम् ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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