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________________ ११६ अमितगतिविरचिता मनुष्याणां पशूनां च परमेतद्विभेदकम् । प्रथमा यद्विचारज्ञा निर्विचाराः पुनः परे ॥६१ असूचि चूतघातीत्थं बहिर्भूतविचारिणः । सांप्रतं कथ्यते क्षीरं श्रूयतामवधानतः ॥६२ छोहारविषये ख्याते सागराचारवेदकः । वणिक सागरदत्तोऽभूज्जलयात्रापरायणः ॥६३ उत्तीर्यं सागरं नक्रमकरग्राहसंकुलम् । एकदा पोतमारुह्य चौलद्वीपमसौ गतः ॥६४ वाणी जिनेश्वरस्येव सुखदानपटीयसी । गच्छता सुरभिता तेनैका' क्षीरदायिनी ॥६५ गत्वा द्वीपपतिर्दृष्टो वणिजा तेन तोमरः । प्राभृतं पुरतः कृत्वा व्यवहारपटीयसा ॥६६ अन्येद्युः पायसीं' नीत्वा शुभस्वादां सुधामिव । तोमरो वीक्षितस्तेन कायकान्तिवितारणीम् ॥६७ ६२) १. कथितः । ६३) १. समुद्रशास्त्रस्य वेदक: । २. जलगमने । ६५) १. गौः । ६७) १. क क्षीरम् । मनुष्य और पशुओं में केवल यही भेद है कि मनुष्य विचारशील होते हैं और पशु उ विचारसे रहित होते हैं ॥ ६१ ॥ इस प्रकारसे मैंने विचारहीन आम्रघाती पुरुषकी सूचना की है। अब इस समय क्षीरपुरुषके स्वरूपको कहता हूँ, उसे सावधानतासे सुनिए || ६२ || छोहार देश में समुद्र सम्बन्धी वृत्तान्तका जानकार ( अथवा सामुद्रिक शास्त्रका वेत्ता ) एक प्रसिद्ध सागरदत्त नामका वैश्य था । वह जलयात्रामें तत्पर हुआ || ६३ || एक समय वह जहाजपर चढ़कर नक्र, मगर और ग्राह आदि जल-जन्तुओंसे व्याप्त समुद्रको पार करके चौल द्वीपमें पहुँचा ॥६४॥ जाते समय वह अपने साथ जिनवाणीके समान सुखप्रद एक दूध देनेवाली कामधेनु (गाय) को ले गया || ६५ || वहाँ जाकर व्यवहारमें चतुर उस सागरदत्त वैश्यने भेंटको आगे रखते हुए उक्त द्वीप स्वामी तोमर राजाका दर्शन किया ||६६|| दूसरे दिन उक्त वैश्यने अमृत के समान स्वादिष्ट और शरीरमें कान्तिको देनेवाली खीरको ले जाकर उस तोमर राजासे भेंट की ॥६७॥ ६१) अपरैः । ६२) अ ब विचारणः । ५३) अ ब चोहारविषये; अ ख्यातः । ६४) अ ब चोचद्वीपं । ६५) क इ पटीयसा । ६७) अ वीक्ष्यतस्तेन; इ वितारिणीम् ।
SR No.006233
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
Author
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1978
Total Pages430
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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