________________
११४
कासशोषजराकुष्टच्छविशूलक्षयादिभिः । रोगैर्जीवितनिर्विण्णा' दुःसाध्यैः पीडिता जनाः ॥४८ निशम्य विषमाकन्दं खण्डितं क्षितिपालिना । आदायाखादिषुः सर्वे प्राणमोक्षणकाङ्क्षिणः ॥४९ तदास्वादनमात्रेण सर्वव्याधिविवजिताः । अभूवन्निखिलाः सद्यो मकरध्वजमूर्तयः ॥ ५० आकर्ण्य कल्यतां राजा तानाह्वाय सविस्मयः । प्रत्यक्षीकृत्य दुश्छेदं विषादं तरसागमत् ॥५१ विचित्रपत्र संकीर्णः क्षितिमण्डलमण्डनः । सर्वाश्वासकरश्चूतो यश्चक्रीव महोदयः ॥ ५२ दूरीकृत विचारेण कोपान्धीकृतचेतसा निर्मूलकाषमुत्तुङ्गः स मया कषितः
कथम् ॥५३
४८) १. क खेदखिन्नाः । ५१) १. नीरोगताम् ।
अमितगतिविरचिता
५२) १. वाहन ।
५३) १. क स्फेटकः ।
उस समय जो लोग खाँसी, शोष ( यक्ष्मा ), कोढ़, छर्दि, शूल और क्षय आदि दुःसह रोगों से पीड़ित होकर जीवनसे विरक्त हो चुके थे उन लोगोंने जब यह सुना कि राजाने विषमय आम्र के वृक्षको कटवा डाला है तब उन सबने मरनेकी इच्छासे उसके फलोंको लेकर खा लिया ॥४८-४९।।
उनके खाते ही वे सब शीघ्र उपर्युक्त समस्त रोगोंसे रहित होकर कामदेव के समान सुन्दर शरीरवाले हो गये ॥ ५० ॥
जब राजाने उक्त वृक्षकी रोगनाशकता ( या कल्पवृक्षरूपता) को सुना तो उसने उक्त रोगियोंको बुलाकर आश्चर्यपूर्वक प्रत्यक्ष में देखा कि उनके वे दुःसाध्य रोग सचमुच ही नष्ट हो गये । इससे उसे वृक्ष कटवा डालनेपर बहुत पश्चात्ताप हुआ ||५||
तब राजा सोचने लगा कि वह वृक्ष चक्रवर्तीके समान महान् अभ्युदयसे सम्पन्न था - जिस प्रकार चक्रवर्ती अनेक प्रकारके पत्रों (हाथी, घोड़ा एवं रथ आदि वाहनों) से सहित होता है उसी प्रकार वह वृक्ष भी अनुपम पत्रों ( पत्तों) से सहित था, यदि चक्रवर्ती पृथिवीमण्डल से मण्डत होता है— उसपर एकछत्र राज्य करता है - तो वह वृक्ष भी पृथिवीमण्डलमण्डित था - पृथिवीमण्डलको सुशोभित करता था, तथा जिस प्रकार चक्रवर्ती मनुष्योंकी आशाओंको पूर्ण करता है उसी प्रकार वह वृक्ष भी उनकी आशाओंको पूर्ण करनेवाला था । इस प्रकार जो वृक्ष पूर्णतया चक्रवर्तीकी समानताको प्राप्त था उस उन्नत वृक्षको
४९) काङ्क्षिभि: । ५० ) क ड इ अभवन् । ५१) ब क इ कल्पतां, ड कल्पिता; इ तानाहूय; इ प्रत्यक्षीकृतदुश्छेद्यं; क इ परमागमत् । ५२ ) अ ' मण्डितः for मण्डनः । ५३) अ कथितः, ब ड इ कर्षितः for कषितः ।